Wednesday, June 22, 2011

चेहरा देखने को एक आइना चाहिए
आइना देख कर मुस्कराना चाहिए।
बिन बात के हंसता पगला लगेगा
मुस्कराने के लिए बहाना चाहिए।
आंसू हर वक्त कहाँ निकलते हैं
रोने के लिए भी अफसाना चाहिए।
बादलों में घूमा फिरेगा कब तलक

परिंदे को भी एक ठिकाना चाहिए।
हुनर है तो काम मिल ही जायेगा
इसके लिए पसीना बहाना चाहिए।
डरने से कभी मंजिल नहीं मिलती
हिम्मत रख क़दम बढ़ाना चाहिए।
सुख औ दर्द जिंदगी का हिस्सा है
जश्न हर हाल में मनाना चाहिए।



कभी कमतर था अब खूबतर है
गैर था कभी अब हमसफ़र है।
तब बाहर आने की जद्दोज़हद थी
रहता अब घर के ही अन्दर है।
वहशत शाम की देखी नहीं जाती
तासीर उसकी रहती रात भर है।

जीना भी हर पल दुश्वार है यहाँ
महफूज़ कहाँ रहा अब शहर है।
जब चाहे खत्म कर दे हमको
वक्त के हाथों में वो खंज़र है।
उस दिन सूरज का क्या होगा
जिस दिन हुई अगर न सहर है।
अलफ़ाज़ मैं खुबसूरत लिखता हूँ
उस्ताद मेरा मुझसे मुअतबर है।
मुअतबर - विश्वस्त



Tuesday, June 21, 2011

काश ! थोडा वक्त मेरे लिए होता
कोई संग मुस्कराने के लिए होता।
उम्मीदें नई दिल में घर कर जाती
वो अगर तसल्ली देने के लिए होता।
बंदिशें अगर लगी हुई नहीं होती
दिल खोलकर रखने के लिए होता।
जो कुछ मेरा था वो मेरा ही रहता
यदि शौक मेरा कुछ पैसे लिए होता।
आइना बुरा मेरा भी मान जाता
अगर मैं अनेक चेहरे लिए होता।
सूरज के दम पर कभी न चमकता
चाँद गर अपने उजाले लिए होता।
रो लेते हम भी जी भर कर अगर
आँखों में पानी रोने के लिए होता।


जिंदगी खुदा का दिया एक तोहफा है
मौत से हर वक्त करती मुकाबला है।
मुझमें और तुझमें कोई अंतर नहीं है
दिल में भरा हुआ अगर हौसला है।
मेरा नहीं है वह तेरा भी नहीं है वह
जुर्म करने वाले को देता सज़ा है।
जिंदगी सफ़र है समंदर से गहरा
ख़ुशी के साथ गम भूला बिसरा है।
उम्र पर पाबंदियां लगी हुई हैं क्यों
पीना रुतबे जरूरत का मामला है।
भ्रस्टाचार मिटाने को कहते हैं सब
मिटे कैसे दिल का तो यह हिस्सा है।






Sunday, June 19, 2011

फादर डे पर

पिता का प्यार मां के बाद ही आंका जाता है
पिता का स्थान भी मां के बाद ही आता है।
मां के पैरों तले ही तो जन्नत भी होती है
बाप के दिल से होके उसका रस्ता जाता है।
माना कि मां का प्यार सबसे उंचा होता है
बाप का रिश्ता भी तो बेटे से ख़ास होता है।
मां बेटे के सर पे हाथ रख खाना खिलाती है
पिता का प्यार उसको जीना सिखाता है।
हाथ मां के साथ सर पर बाप का भी जरूरी है
बाप जिम्मेदारियों का सब बोझ उठाता है।


Friday, June 17, 2011

कभी ऊचाइयों से डर नहीं लगता
कभी रुसवाइयों से डर नहीं लगता।
खुशियों से डर लगता है हर वक़्त
कभी उदासियों से डर नहीं लगता।
तैरना आ गया है दिल को जब से
अब गहराइयों से डर नहीं लगता।
मुहब्बत दीवानापन और रतजगे
इन बस्तियों से डर नहीं लगता।
खामोश परछाइयाँ देखी हैं इतनी
अब वीरानियों से डर नहीं लगता।
अपने रूप पर कभी घमंड था हमें
अब बरबादियों से डर नहीं लगता।
जिंदगी भर नादानियाँ की इतनी
अब नादानियों से डर नहीं लगता।


Thursday, June 16, 2011

मेहमान नवाज़ी का ज़माना नहीं रहा
अब अगवानी का ज़माना नहीं रहा।
राह में मुश्किलें भी पड़ी हुई हैं बहुत
उतनी आसानी का ज़माना नहीं रहा।
हिम्मत पूरे दम ख़म के साथ लौटी है
अब मायूसी का ज़माना नहीं रहा।
हर एक शख्श पायेगा अपनी ज़गह
अब मजबूरी का ज़माना नहीं रहा।
ज़माना मांफ नहीं करेगा कभी भी
अब नादानी का ज़माना नहीं रहा।


मन के तहखाने कहाँ खुलते हैं
हंसने के बहाने कहाँ मिलते हैं।
पीने की तलब uthti rahti hai
हर जगह मैखाने कहाँ मिलते हैं।
धूप में पानी में कहीं भी बिठा दे
ऐसे अब दीवाने कहाँ मिलते हैं।
तन मन सबका सुलग उठता है
जलते हुए परवाने कहाँ मिलते हैं।
आँखें तो यूँ ही नम हो जाती हैं
गम वह पुराने कहाँ मिलते हैं।
हुलस हुलस कर देख तो लेते हैं
मिलने के बहाने कहाँ मिलते हैं।

Wednesday, June 15, 2011

हमें तो हमारी ही आदत ने मारा
उससे जुड़े रहने की चाहत ने मारा।
शहर में कोई भी दुश्मन नहीं था
मिल कर रहने की आदत ने मारा।
बड़ी हसरत से तकती थी मुझको
उन आँखों की शरारत ने मारा।
साथ तेरा बहुत हसीन था मगर
हमको वहम की आदत ने मारा।
मुझ में किसी शय की कमी थी
उसे एक इसी शिकायत ने मारा।
दिये ने हौसला हारा ही कब था
उसे तो हवा की सियासत ने मारा।
कुछ दिन और भी जी लेता मगर
दिल को दिल की हिफाज़त ने मारा।
ईंट ईंट जोड़ कर मकान बनता है
सजाने से घर आलिशान बनता है।
ज़र्रा जो आसमान चूमकर आता है
सबकी नज़र में महान बनता है।
सनक नहीं चाहिए समझ चाहिए
समझ से आदमी इंसान बनता है।
कमाल तो सब ही करते हैं मगर
कोई आंसू ही मुस्कान बनता है।
ऐसे आदमी का करे क्या कोई
समझते हुए जो नादान बनता है।
काफिले से अलग चलता है जो
शख्श वही तो सुल्तान बनता है।
साफ़ कहता हूँ हकलाता नहीं हूँ
गलत काम भी करवाता नहीं हूँ।
बची रहे शाख सदा ही जिस से
अनजाना वैभव जुटाता नहीं हूँ।
बुनियादी तौर से मजबूत हूँ मैं
तूफ़ान से भी घबराता नहीं हूँ।
जब तक दम है उम्र का क्या
दिल में नाउमीदी लाता नहीं हूँ।
कितनी दलीलें दिया करे कोई
किसी से शिकस्त खाता नहीं हूँ।
चुस्त दुरुस्त बना रहता हूँ सदा
किसी का बोझ बढाता नहीं हूँ।
ठेठ हिन्दुस्तानी हूँ दिल से मैं
विदेशी राग अपनाता नहीं हूँ।
मुंबई -१५ जून २०११

Monday, June 13, 2011

आदमी गोरा हो या काला क्या फर्क पड़ता है
अखलाक अच्छा है कि बुरा इसका फर्क पड़ता है।
रिश्वत कितनी खिलाई क्या फर्क पड़ता है
काम हुआ या कि नहीं हुआ फर्क पड़ता है।
मेहनत से कमाई गई है या फिर लूट कर
दौलत सफ़ेद हो या काली क्या फर्क पड़ता है।
वक्त था लोग पैसा छोड़ देते थे आदर्श नहीं
आज पैसा है आदर्श नहीं क्या फर्क पड़ता है।
अब महत्ता मिलती है पैसे को या पद को
नजरिया बदल गया है इसका फर्क पड़ता है।





Friday, June 10, 2011

ज़ख्म अधूरा कभी सिया नहीं जाता
मुश्किल में हर वक्त रहा नहीं जाता।
सम्भलने में कुछ तो वक्त लगेगा
गम हर वक्त भी झेला नहीं जाता।
किसको फुरसत है यहाँ मरने की
मरने वाले के लिए मरा नहीं जाता।
मेरी महफ़िल में ही रहता है सदा
दर्द कहीं भी मेरे सिवा नहीं जाता।
सामने सर उठा कर चलूं कैसे तेरे
चेहरे पे मेरा नाम पढ़ा नहीं जाता।
तेरे शहर में हूँ मैं यही बहुत है
हर वक्त घर पर रहा नहीं जाता।
मसअला मसअला बना रहता है
जब तलक हल किया नहीं जाता।
चेहरे फूल से खिले लगते हैं सब
हर फूल को भी छुआ नहीं जाता।
पेड़ लचीला था पर टूट गया
साथ पुराना था छूट गया।
रफ्तार तूफ़ान की तेज थी
अपनों से रिश्ता टूट गया।
दर्द का बखान अब करें कैसे
जिस पे भरोसा था टूट गया।
रंग है न खुशबु न फूल कोई
हवाओं में सब ही लुट गया।
उसको अठखेलियाँ सूझी थी
किसी का आबला फूट गया।
तुम्हारे गाल गुलनार हैं मुझसे
कहते हुए आइना टूट गया।
जिसे देख वो याद आ रहा था
ख़त हाथों से वह ही छूट गया।
अब गीत ग़ज़ल मैं लिखूं कैसे
कलम ही कहीं मेर छूट गया।
आबला-छाला
गुलनार-लाल

Wednesday, June 8, 2011

हवा भी चलती रहे दिया भी जलता रहे
ऐसा कुछ हो जाये काम सब चलता रहे।
नामुमकिन कुछ नहीं है यह भी जान ले
ख्याल दिल में सदा यह भी पलता रहे।
खामोशियाँ जान लेवा होती हैं बहुत
कहकहों में दिल उन्हें दफ़न करता रहे।
दुनिया को झुकादे कभी खुदको कभी
अकड़ कर रहे कभी कभी पिघलता रहे।
प्यार के वफ़ा के रिश्ते निभाता रहे
आदतें ऐसी हों की वजूद निखरता रहे।
आँखों में शर्म रहे जुबान भी नर्म रहे
दिल एहितराम भी सबका करता रहे।



Tuesday, June 7, 2011

एक बार लब से छुआ कर तो देखिये
चीज़ लाजवाब है पी कर तो देखिये।
बड़ी हसीं शय है कहते हैं इसे शराब
दवा दर्दे दिल है आजमाकर तो देखिये।
उदासी खराशें थकान मिट जाएँगी
जाम से जाम टकरा कर तो देखिये।
गम ही गम हैं यहाँ कौन कहता है
ख़ुशी महक उठेंगी पीकर तो देखिये।
इसका अलग निजाम है जान जाओगे
इसके साथ जरा लहरा कर तो देखिये।
तहे दिल से करोगे इसे तुम सलाम
एक बार अपना बना कर तो देखिये।
लकीर चेहरे पर उम्र का पता देती है
लकीर हाथ की मुकद्दर का पता देती है।
हवा नमकीन समंदर से उड़के आती है
उदास हो तो टूटे जिगर का पता देती है।
बेहद प्यार से संवारते हैं हम घर को
उजड़ी हवेली खंडहर का पता देती है।
दुखों का बंटवारा कर नहीं पाते हम
ख़ुशी किसी धरोहर का पता देती है।
कभी हंसी कोई जान निकाल देती है
कोई दिल के अन्दर का पता देती है।
गाँव बनावटीपन से बहुत दूर होता है
रोटी दिल लुभाते शहर का पता देती है।
जिंदगी पाँव में घुँघरू बंधा देती है
जब चाहे जैसे चाहे नचा देती है।
सुबह और होती है शाम कुछ और
गम कभी ख़ुशी के नगमें गवा देती है।
कहती नहीं कुछ सुनती नहीं कुछ
कभी कोई भी सजा दिला देती है।
चादर ओढ़ लेती है आशनाई की
हंसता हुआ चेहरा बुझा देती है।
चलते चलते थक जाती है जिस शाम
मुसाफिर को कहीं भी सुला देती है।
आशनाई -अपरिचय

Saturday, June 4, 2011

जवानी अपनी जवानी पर थी
निगाहें उसकी जवानी पर थी।
अज़ब खुमारी का माहौल था
दीवानगी पूरी दीवानी पर थी।
किसी को अपनी परवा न थी
शर्त भी रूहे-कुर्बानी की थी।
हुस्न भी सचमुच का हुस्न था
खुशबु भी तो जाफरानी पर थी।
वक़्त का पता नहीं कटा कैसे
चर्चा दिल की नादानी पर थी।
तैरने वाले भी तैरते भला कैसे
दरिया ए इश्क उफानी पर थी।

Thursday, June 2, 2011

न बादल होता न बरसात होती
दिन अगर न होता न रात होती।
गम ही न होता अगर जिंदगी में
बहार से भी न मुलाक़ात होती।
नए लोगों की जो आमद न होती
रंगों से कैसे फिर मुलाक़ात होती।
लफ्ज़ ख़ूबसूरत लिखने न आते
मुहब्बत में हमें फिर मात होती।
अच्छा है रही न कोई भी तलब
मिटती हुई उमीदें-हालात होती।
खुशबु-ऐ-हिना उड़कर आई थी
मिल जाती कुछ और बात होती।
जुर्म जिसका था सजा उसे मिलती
हुज्ज़त की न कोई बात होती।
अंगड़ाइयों से बदन टूट जाता
बरसात की अगर यह रात होती।
आज की रात यूं ही गुज़र जाने दे
पहलू में नई शय उभर जाने दे।
तेरी रज़ा में ही मैं ढल जाऊँगा
कतरा बनके मुझे बिखर जाने दे।
बहुत शोर मचा है जिंदगी में तो
तन्हाई में भी तूफ़ान भर जाने दे।
यादों का आना जाना लगा रहेगा
सीने में कुछ देर दर्द ठहर जाने दे।
अँधेरे की फितरत से वाकिफ हूँ
आँगन में बस सहर उतर जाने दे।
आसमां जमीं पर ही उतर आएगा

शून्य को तह दर तह भर जाने दे।
मुर्दे में भी जान आ ही जाएगी
एहसास से जरा उसे भर जाने दे।
आवाज़ देकर बुला लेना कभी भी
इस वक़्त मुझे पार उतर जाने दे।




मैंने तेरे नाम चाहतें लिख दी
आँखों की तमाम हसरतें लिख दी।
रंग जो हवा में बिखर गये थे
ढूँढने की उन्हें सिफारिशें लिख दी।
अपनी मुहब्बत तुझे सुपुर्द कर
तेरे नाम सारी वहशतें लिख दी।
खुशबु उड़ाती तेरी शामों के नाम
बहार की सब नर्मआहटें लिख दी।
चमकते जुगनुओं की कतार में
ख़ुशी की मैंने वसीयतें लिख दी।
किस जुबां से तुझे शुक्रिया दूं मैं
अपने हाथों में तेरी लकीरें लिख दी।
तुझे खबर नहीं दी अपने होने की
फिर भी तेरे नाम साजिशें लिख दी।