Sunday, July 11, 2010

बचपन गुजर जाता है.

बचपन कितना सुंदर हो गुजर जाता है
मन की दहलीज पर सन्नाटा पसर जाता है।
सियाह काले बादल घिर कर जब आते हैं
उजले दिन में भी अँधेरा बिखर जाता है।
सूखे जर्द पत्तों से खुशबु नहीं मिलती
हवा के साथ उनपर गम उभर जाता है।
उदासियों के बीच उभरती है हंसी जब
चेहरे पर एक नया दर्द निखर जाता है।
रात में जब बिजली चली जाती है
बच्चा माँ की गोद में भी डर जाता है।

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