Wednesday, July 28, 2010

आईने ने तो बहुत खुबसूरत लगने की गवाही दी थी .

आईने ने तो बहुत खुबसूरत लगने की गवाही दी थी
कोई मुझे देखा करे मैंने ही किसी को यह हक न दिया।
वक्त ने भी मेरी तन्हाइयों को पहचान लिया था
मेरे गरूर ने मुझे किसी आँख में रहने एक पल न दिया।
रह रह कर कईं सिलसिले याद आ रहे हैं आज
काश ! भूले से ही किसी महफ़िल में रह लिए होते ।
आज वक़्त ही वक़्त है काटे से भी नहीं कटता
कभी मोहलत मिली होती अपनों से गले मिल लिए होते।

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