Wednesday, July 21, 2010

खुशबुओं के दरीचे खुल गये .

या तो खुशबुओं के कही दरीचे खुल गये
या नयी किस्म के कहीं फूल खिल गए ।
हवा में घुली है महक उनके शबाब की
या अंगडाई लेकर वो खुद मचल गये।
खिंचते चले गये हम अल्लाह के करम से
जेहन में खुश्बुओं के कतरे ठहर गये ।
उनके करीब जाके उन्हें पलकों से छुआ
आँखों में अनजान से सपने मचल गये ।
दिल बंदिशों में फिर कैसे रहता बंध कर
तूफ़ान में हम तिनका तिनका बिखर गये।
इम्तिहान जैसे ले रही थी हमारा कुदरत
जिस्म में सैलाब के दरिया मचल गये ।


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