गीत लिखूं ग़ज़ल लिखूं कविता लिखूं
तू बता तेरी क़िस अदा पे क्या लिखूं।
तेरी वफ़ाओं का मैं क़ायल हूँ इतना
जी नहीं चाहता तुझे मैं बेवफ़ा लिखूं ।
वह सितमगर है तू मेरे पर कुतर दिए
कैसे बता तुझे फिर मैं बावफ़ा लिखूं।
आईने ने भी पूछा यह साया किसका है
एक रहज़न को कैसे मैं रहनुमा लिखूं।
मैं क्या तमाम शहर पूछेगा कुछ न कुछ
कैसे मैं तेरे नाम दिल की दुनिया लिखूं।
अगर मैं रोना चाहूं खुल के रो न सकूँ
ज़ख्मे दिल की बता मैं क्या खता लिखूं।
चिराग़े शाम ने अँधेरा तो मिटा ही दिया
मगर दिल किसका जला बता क्या लिखूं।
जब पूरा ज़िक्र मिसरा ऐ ऊला में हो चुका
अपने चौदहवीं का चाँद पे बता क्या लिखूं।
मिसरा ऐ ऊला - पहली पंक्ति
तू बता तेरी क़िस अदा पे क्या लिखूं।
तेरी वफ़ाओं का मैं क़ायल हूँ इतना
जी नहीं चाहता तुझे मैं बेवफ़ा लिखूं ।
वह सितमगर है तू मेरे पर कुतर दिए
कैसे बता तुझे फिर मैं बावफ़ा लिखूं।
आईने ने भी पूछा यह साया किसका है
एक रहज़न को कैसे मैं रहनुमा लिखूं।
मैं क्या तमाम शहर पूछेगा कुछ न कुछ
कैसे मैं तेरे नाम दिल की दुनिया लिखूं।
अगर मैं रोना चाहूं खुल के रो न सकूँ
ज़ख्मे दिल की बता मैं क्या खता लिखूं।
चिराग़े शाम ने अँधेरा तो मिटा ही दिया
मगर दिल किसका जला बता क्या लिखूं।
जब पूरा ज़िक्र मिसरा ऐ ऊला में हो चुका
अपने चौदहवीं का चाँद पे बता क्या लिखूं।
मिसरा ऐ ऊला - पहली पंक्ति