Wednesday, July 31, 2013

बीमार के संग बीमार नहीं हुआ जाता
टूटी किश्ती में सवार नहीं हुआ जाता !
हज़ार कयामतें लिपटती हैं  क़दमों से
मगर फिर भी लाचार नहीं हुआ जाता !
बेशुमार धब्बे हैं धूप के तो दामन पर
हम से ही गुनाहगार नहीं हुआ जाता !
रहमतें तो बरसती हैं आसमां से बहुत
रोज़ के रोज़ साहूकार नहीं हुआ जाता !
यह भी सच कहा है किसी ने  दोस्तों
दोस्ती में ही दावेदार नहीं हुआ जाता !
उम्र गुज़र गई फाकामस्ती में ही सारी
अब हम से तो बेकरार नहीं हुआ जाता !
अपने दुश्मन को भी दुआ दे दें दिल से
इतना भी तो दिलदार नहीं हुआ जाता !
अब ये करें की तोड़ लें रिश्ता बेवफा से
हम से और  तलबगार नहीं हुआ जाता !
अब फ़रिश्ते नहीं उतरते हैं  ज़मीन पर
अब किसी का तरफदार नहीं हुआ जाता !
कुछ नहीं बदलेगा यह मालूम है मुझको
फिर भी मगर खबरदार नहीं हुआ जाता !

Monday, July 29, 2013

इतना  पीओगे तो  पहचानोगे कैसे
वक्त से भी निगाहें मिलाओगे कैसे !
खुश्क लब और चश्मे-तर लिए हुए
जिंदगी का साथ  निभाओगे  कैसे !
प्यार कभी भी मज़ाक  नहीं होता
दिल को अपने ये समझाओगे कैसे !
चाँद को छूने का भी वक्त है  यह
गोद में तुम उस को बिठाओगे कैसे !
बाहों का दम अगर चूक गया  तो
नाज़ फिर किसी के उठाओगे कैसे !
यह पल जो बहुत ही कीमती से हैं
इन लम्हों को सम्भाल पाओगे कैसे !
ये पूछना वक्त से शायद वो बताये
कि मेरे बिना तुम रह पाओगे कैसे !
झूठे वायदों का ही एतबार  करते रहे
हम एक सितमगर से प्यार करते रहे !
हमको पता था तुम न आ सकोगे पर
बेवज़ह ही हम फिर इंतज़ार करते रहे !
सारी रात चलते रहे पर घर नहीं पहुंचे
जख्मों की ही ही चार दीवार करते रहे !
गुज़रा नहीं एक लम्हा भी चैन से कभी
जिंदगी से हम तब भी प्यार करते रहे !
ख्वाबों जैसा रूप नही मिल सका कभी
तैयार खुद को तो बार बार करते रहे !
कोलकाता

Saturday, July 20, 2013

दीवारों से हम  बात क्या करते
तस्वीर से मुलाक़ात क्या करते !
तुम ही  नहीं थे शहर में  जब
तुम्हारी दी सौगात  क्या करते !
फ़ुरसत ही नहीं थी तुम को तो 
हम गुफ़्त्गुए जज़्बात क्या करते !
बस चंद खुशियों  के वास्ते हम
दुश्वार यह  हयात क्या  करते !
तुम को  ही याद न करते अगर
तो और  सारी रात  क्या करते !
सिमटने की कोशिशों में थे हम
हम  और  सवालात क्या करते !
हर एक  सवाल जवाबी नहीं होता
चिराग  कभी आफ़ताबी नहीं होता !
गुज़र तो हमारी भी अच्छी हो जाती
दिल हमारा अगर नवाबी नहीं होता !
निगाहे नाज़ से अगर पिला देते मुझे
ख़ुदा की क़सम मैं शराबी नहीं होता !
खुशबु तो मुझमे वही आती है अब भी
मौसम  लेकिन अब गुलाबी नहीं होता !
मैं लफ़्ज़ों में खुद को सिमेट तो लेता
हर एक दर्द मगर  किताबी नहीं होता !
हजारों कत्ल हो गए इस राहे इश्क में
 इश्क खुद तो खानाख़राबी नहीं होता
अपनों की किस से शिकायत करूं
बच्चों सी क्या अब शरारत करूं !
मन्दिर मिली तुम तो सोचता रहा
देखता रहूँ तुम्हे या इबादत करूं !
बला की खुबसूरत हो तुम इतनी
इन आँखों पे कितनी इनायत करूं !
आँखे इतरा रही हैं देख कर तुम्हे
न देखने की कैसे मैं हिमाक़त करूं !
खुशबु की उजालों की धनक हो तुम
किस क़दर तुम्हारी हिमायत करूं !
खो न दे मासूमियत अपनी ये कहीं
इस दिल की कितनी हिफाज़त करूं !
यादों के सहारे जिंदगी नहीं कटती
आंसुओं से कभी झोली नहीं भरती !
दिल की धरती बंज़र अगर होती
तमन्नाओं की फसल नहीं खिलती !
जगमगाते शहर में अँधेरी सी गली
कौन कहता है , कि नहीं मिलती !
मैं भी अकेला हूँ, है तू भी अकेला
जिंदगी मिल कर क्यों नहीं चलती !
गम में दिल की हालत मैं क्या कहूं
बैठे बैठे अब रात भी नहीं ढलती !
... दिन भर का चैन और रात की सुध
खुशियाँ तो खैरात में नहीं मिलती !
चाँद में कोई बोल कर छिप गया
तस्वीर उसकी अब तो नहीं दिखती !
चलते रहने का ही तो नाम जिंदगी है
जिंदगी रुक रुक कर भी नहीं चलती !