कोई पूछे कहना हम तौबा नहीं करते
दोस्तों के लिए हम क्या नहीं करते।
ठोकरे तो जमाने में सबको लगती हैं
किसी के गिर जाने पे हंसा नहीं करते।
तू तो मुसाफिर ही खुली धूप का था
फिर गिला क्यों है हम साया नहीं करते।
ख़ाली हाथ आये ख़ाली हाथ ही रहे
शुहरत पाकर कभी मचला नहीं करते।
आँधियों को हाथ थामने की जिद थी
कागज की नाव में पार जाया नहीं करते।
यह भी हमारी किस्मत की ही खराबी थी
वरना रात में घर से निकला नहीं करते।
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