हर खुशबु की अलग ही तासीर होती है
बहते हैं अश्क आँख से जब पीर होती है।
फूल नकली ही चमकते हैं सालों साल
असली फूल की भी क्या तकदीर होती है।
मां की बेटी की बहिन की औ बीवी की
हर मुहब्बत की अलग तस्वीर होती है।
चमका देती है मेरे नसीब को भी वह
वह जो तेरे हाथ की लकीर होती है।
गरूर लहजे में मेरे भी आ ही जाता है
दिल में बसी तेरी जब तस्वीर होती है।
तुझ से ही पूछता हूँ बार बार मैं यह
क्यों जान लेवा तेरी तस्वीर होती है।
ख्वाहिशें बदलती हैं, है जिस्म टूटता
शबे- तन्हाई की यह तासीर होती है।
ज़ल्द सूखता है हरा रहता है कभी
हर ज़ख्म की अलग तकदीर होती है।
बाज़ार खुल जाता है जब दर्द का दिल में
चेहरे पर खिंची एक लकीर होती है।
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