Thursday, November 18, 2010

वक़्त के साथ चलता चलता मैं लम्हा हो जाऊँगा

वक़्त के साथ चलता चलता मैं लम्हा हो जाऊँगा
बेटे को छोटू कहते कहते मैं बूढा हो जाऊँगा।
मेरे क़द से ऊंचा जब छोटू मेरा हो जायेगा
अंगुली पकड़ के चलता मैं बच्चा हो जाऊँगा।
आँखों पर हथेली रखकर पूछेगा मैं कौन हूँ
मचल जाऊँगा मैं उसका सपना हो जाऊँगा।
नाहक छेड़ा किस्सा तूने महफ़िल में रहने का
घर तक पहुंचते पंहुचते मैं रुसवा हो जाऊँगा।
अपने हाथों में लिखी तेरी मेरी तकदीर का
वरक पढ़ते पढ़ते मै किस्सा हो जाऊँगा।

2 comments:

  1. सत्येन्द्र जी आपकी रचनाधर्मिता को सलाम

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  2. अपने हाथों में लिखी तेरी मेरी तकदीर का
    वरक पढ़ते पढ़ते मै किस्सा हो जाऊँगा।

    वाह, गुप्ता जी, बहुत ही भावुक कर देने वाली रचना का सृजन किया है आपने...बहुत सुंदर।

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