वक़्त के साथ चलता चलता मैं लम्हा हो जाऊँगा
बेटे को छोटू कहते कहते मैं बूढा हो जाऊँगा।
मेरे क़द से ऊंचा जब छोटू मेरा हो जायेगा
अंगुली पकड़ के चलता मैं बच्चा हो जाऊँगा।
आँखों पर हथेली रखकर पूछेगा मैं कौन हूँ
मचल जाऊँगा मैं उसका सपना हो जाऊँगा।
नाहक छेड़ा किस्सा तूने महफ़िल में रहने का
घर तक पहुंचते पंहुचते मैं रुसवा हो जाऊँगा।
अपने हाथों में लिखी तेरी मेरी तकदीर का
वरक पढ़ते पढ़ते मै किस्सा हो जाऊँगा।
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सत्येन्द्र जी आपकी रचनाधर्मिता को सलाम
ReplyDeleteअपने हाथों में लिखी तेरी मेरी तकदीर का
ReplyDeleteवरक पढ़ते पढ़ते मै किस्सा हो जाऊँगा।
वाह, गुप्ता जी, बहुत ही भावुक कर देने वाली रचना का सृजन किया है आपने...बहुत सुंदर।