Tuesday, May 11, 2010

तेरे शहर में

तेरे शहर में लफ्ज़ नहीं मिलते
करने को बात शख्स नहीं मिलते।
देख कर दुःख दर्द किसी का यहाँ
बहते आँखों से अश्क नहीं मिलते।
जरा सी बात पर नज़र फेर लेते हैं
लोग यहाँ मुसलसल नहीं मिलते।
हसरतें बगल से निकली चली जाती हैं
लेकर दिलों में उल्फत नहीं मिलते।
सूरज निकलता है चाँद भी निकलता है
करते अंधेरों से सुलह नहीं मिलते।
सर-ता-पा समन्दर में भीगे तो मिलते हैं
बारिश में लोग करते रक्स नहीं मिलते।
पत्थरों से चीने हुए तेरे शहर में
दिलों के फैले दश्त नहीं मिलते।

1 comment:

  1. हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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