हर समय आदमी को पेट की चिंता रहती है
क्या पकाएं क्या खाएं इसकी चिंता रहती है ।
डॉक्टर को दिखाने पर भी तसल्ली होती नहीं
दवा ठीक मिली की नहीं ,यही चिंता रहती है ।
चेहरे पर उम्र की परछाइयाँ दिखाई न दें
बढती उम्र के साथ बस यही चिंता रहती है ।
दिन गुजार लेता है आदमी कहीं भी कैसे भी
शाम ढलते ही घर लौटने की चिंता रहती है ।
अपना न होकर रह सका यह दिल कभी भी
इसे किसी का बनकर रहने की चिंता रहती है ।
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