मल्टीप्लेक्स तो मिलते हैं थिअटर नहीं मिलता
अब दीवार पर टंगा कोई कलेंडर नहीं मिलता ।
कभी रेडियो का होना स्टेट्स सिम्बल होता था
अब बजता कहीं रेडियो ट्रांजिस्टर नहीं मिलता ।
गाँव दर गाँव उजड़ते हैं तो एक शहर बस्ता है
शहर में गाँव का कोई खँडहर नहीं मिलता ।
किताबें दर्द की बहुत मिलती हैं शहर में
बस ख़ुशी का ही कोई चेप्टर नहीं मिलता ।
गुरु और चेले का रिश्ता भी पैसे में बिक गया
अब टयूटर तो मिलते हैं टीचर नहीं मिलता ।
शुक्र है गाँव मे इंसानियत अभी बाकी है
शहर मे गाँव जैसा कोई करेक्टर नहीं मिलता ।
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