आंसुओं के मरहम से ज़ख्म नहीं भरते
ज़र्द मौसम में सुर्ख़ फूल नहीं खिलते।
एक अरसा हो गया कस्तूरी को महकते
वक़्त उतना ही हुआ मृग को भी तड़पते।
दिल ने बहुत चाहा मिलता रहूँ तुम से
भीड़ में ख्वाहिशों को रस्ते नहीं मिलते।
उस लम्हे के गुज़रने का इल्म न हुआ
सदियां गुज़र गईं उस पल के गुज़रते।
ज़िस्म उधड़ गया ताना बाना बुनने में
वो कहते रहे हम हद से नहीं गुज़रते।
साक़ी से भी रब्त हमारा अब नहीं रहा
सिलसिला ए शौक़ अब हम नहीं रखते।
तारे तो और भी उतर आते ज़मीन पर
हर दरे दिल पर हम सज़दा नहीं करते।
ज़र्द मौसम में सुर्ख़ फूल नहीं खिलते।
एक अरसा हो गया कस्तूरी को महकते
वक़्त उतना ही हुआ मृग को भी तड़पते।
दिल ने बहुत चाहा मिलता रहूँ तुम से
भीड़ में ख्वाहिशों को रस्ते नहीं मिलते।
उस लम्हे के गुज़रने का इल्म न हुआ
सदियां गुज़र गईं उस पल के गुज़रते।
ज़िस्म उधड़ गया ताना बाना बुनने में
वो कहते रहे हम हद से नहीं गुज़रते।
साक़ी से भी रब्त हमारा अब नहीं रहा
सिलसिला ए शौक़ अब हम नहीं रखते।
तारे तो और भी उतर आते ज़मीन पर
हर दरे दिल पर हम सज़दा नहीं करते।
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