हाथ ज़ख्मीं किये थे लकीरें मिटाने को
मरहम लगाया फिर लकीरें बचाने को।
नसीब ने तो असर अपना दिखाना था
दाग़ बाक़ी छोड़ दिए दिल दुखाने को।
मुक़ाम कई आए हदें पार की मिल कर
मिला न कोई ता उम्र साथ निभाने को।
वह अंदाज़ शोख़ वह तेवर वह बांकपन
तड़पे थे बहुत हम उसे गले लगाने को।
अब तलक़ वह खूबसूरत पल नहीं आया
सोचा था कभी घर को ज़न्नत बनाने को।
खता किसी की न थी वो खता मेरी ही थी
मेरी ही ज़िद्द थी तुमको आज़माने को ।
तुम्हारी खूबसूरती अब भी पहले जैसी है
नज़र ही वह नही रही अब देख पाने को।
ज़िंदगी ठहरी है वहीँ,सब कुछ खो गया
एहसास भी अब न रहे दिल बहलाने को।
कब तक़ किसी की आँखों में चुभते हम
दिखलाई न तन्हाई अपनी ज़माने को।
वक़्त ने भी कभी अपना साथ नहीं दिया
मेह्नत तो बहुत की बुलंदियों पे जाने को।
मरहम लगाया फिर लकीरें बचाने को।
नसीब ने तो असर अपना दिखाना था
दाग़ बाक़ी छोड़ दिए दिल दुखाने को।
मुक़ाम कई आए हदें पार की मिल कर
मिला न कोई ता उम्र साथ निभाने को।
वह अंदाज़ शोख़ वह तेवर वह बांकपन
तड़पे थे बहुत हम उसे गले लगाने को।
अब तलक़ वह खूबसूरत पल नहीं आया
सोचा था कभी घर को ज़न्नत बनाने को।
खता किसी की न थी वो खता मेरी ही थी
मेरी ही ज़िद्द थी तुमको आज़माने को ।
तुम्हारी खूबसूरती अब भी पहले जैसी है
नज़र ही वह नही रही अब देख पाने को।
ज़िंदगी ठहरी है वहीँ,सब कुछ खो गया
एहसास भी अब न रहे दिल बहलाने को।
कब तक़ किसी की आँखों में चुभते हम
दिखलाई न तन्हाई अपनी ज़माने को।
वक़्त ने भी कभी अपना साथ नहीं दिया
मेह्नत तो बहुत की बुलंदियों पे जाने को।
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