Saturday, November 14, 2015

इश्क़ का रुतबा कम नहीं होता 
इश्क़ मज़बूर  बेदम नहीं होता। 

इश्क़ में अगर तपिश नहीं होती 
दिल का कोना  नम नहीं होता। 

हुस्न का सदक़ा भी कौन करता 
इश्क़ में ही अगर दम नहीं होता। 

दिलों में जुनूने इश्क़ नहीं  होता 
दीवानगी का आलम  नहीं होता। 

इश्क़ को अता है  ख़ुश्बू ही ऐसी 
रुसवाइयों का भी ग़म नहीं होता। 

क़यामत का इसमें नशा होता है 
रिश्तों में दैरो -हरम  नहीं होता।

आग का दरिया कहते हैं इसको 
इश्क़ न होता तो ग़म नहीं होता।  

  दैरो -हरम --मंदिर मस्ज़िद 

2 comments: