बचपन गया ज़वानी गई उम्र भी जाने को है
ज़िंदगी अब भी मेरी मुझको आज़माने को है।
कांपते हैं पाँव और आँखे भी तो हैं सहमी हुई
दिल को लगता है करिश्मा कोई हो जाने को है।
मैं क्या और तू क्या सब वही तो हैं कर रहे
उसी सफ़र पर चल रहे क़यामत जहां आने को है।
सिमट गई वक़्त की चादर में ही सारी ज़िंदगी
ख्वाहिश आखिरी वक़्त में भी सर उठाने को है।
न आसमाँ किसी का है न ज़मीं किसी की हुई
जो कमाया छोड़ वो भी खाली हाथ जाने को है।
क्यों मुझको बदनाम करता है ज़माना पूछिए
क्यों हर कोई यहाँ मेरी ही दास्ताँ सुनाने को है।
बड़े अदब के साथ उस को रहनुमा मैंने कहा
आज शख्स वही मुझको आइना दिखाने को है।
सुन रहा हूँ अँधेरे में ये आहटें कैसी मैं आज
कोई आया है आज या आज कोई जाने को है।
जो मयक़दा परस्त हैं वो आएंगे इसी तरफ
एक यही रास्ता है जो जाता मयख़ाने को है।
ज़िंदगी अब भी मेरी मुझको आज़माने को है।
कांपते हैं पाँव और आँखे भी तो हैं सहमी हुई
दिल को लगता है करिश्मा कोई हो जाने को है।
मैं क्या और तू क्या सब वही तो हैं कर रहे
उसी सफ़र पर चल रहे क़यामत जहां आने को है।
सिमट गई वक़्त की चादर में ही सारी ज़िंदगी
ख्वाहिश आखिरी वक़्त में भी सर उठाने को है।
न आसमाँ किसी का है न ज़मीं किसी की हुई
जो कमाया छोड़ वो भी खाली हाथ जाने को है।
क्यों मुझको बदनाम करता है ज़माना पूछिए
क्यों हर कोई यहाँ मेरी ही दास्ताँ सुनाने को है।
बड़े अदब के साथ उस को रहनुमा मैंने कहा
आज शख्स वही मुझको आइना दिखाने को है।
सुन रहा हूँ अँधेरे में ये आहटें कैसी मैं आज
कोई आया है आज या आज कोई जाने को है।
जो मयक़दा परस्त हैं वो आएंगे इसी तरफ
एक यही रास्ता है जो जाता मयख़ाने को है।
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