ग़लती उनकी थी गुनहगार हम हुए
उनके क़रीब रहके शर्मसार हम हुए।
बस्ती में चारों तरफ़ चरचा यही था
मशविरा उनका था शिकार हम हुए।
साया भी मेरी सादगी से शर्मसार था
आईने के सामने भी लाचार हम हुए।
सूरज ले गया उजाले सब समेट कर
और सियाह रात के क़र्ज़दार हम हुए।
भरोसा बहुत था अपने नाखुदा पे हमें
किश्ती में बैठते ही बेक़रार हम हुए।
ज़ख़्म उनके तो सूख गए हवाओं में
पर ग़म में उन के आबशार हम हुए।
बारिश में भीगने से डरते रहे हम सदा
आंसुओं से भीग कर तार तार हम हुए।
आबशार - पानी पानी
उनके क़रीब रहके शर्मसार हम हुए।
बस्ती में चारों तरफ़ चरचा यही था
मशविरा उनका था शिकार हम हुए।
साया भी मेरी सादगी से शर्मसार था
आईने के सामने भी लाचार हम हुए।
सूरज ले गया उजाले सब समेट कर
और सियाह रात के क़र्ज़दार हम हुए।
भरोसा बहुत था अपने नाखुदा पे हमें
किश्ती में बैठते ही बेक़रार हम हुए।
ज़ख़्म उनके तो सूख गए हवाओं में
पर ग़म में उन के आबशार हम हुए।
बारिश में भीगने से डरते रहे हम सदा
आंसुओं से भीग कर तार तार हम हुए।
आबशार - पानी पानी
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