Friday, June 28, 2013

उम्र तीस की थी पचास में ढल  गई
बच्चों को बड़ा करने में ही निकल गई !
वक्त का तो फिर पता ही नहीं चला
पाँव में जैसे एक चकरी सी चल गई !
जिम्मेदारियों का बोझ  उठाते उठाते
मुंह से कभी आह तक भी निकल गई !
कभी ख़ुशी कभी गम और कभी फिक्र
इन के सहारे से ही जिंदगी बहल गई !
बच्चों के सपनो को पूरा करते करते
जवानी ही सारी जैसे कहीं फिसल गई !
जिंदा दिली से सफ़र हम तय करते रहे
आज लगा जैसे कायनात ही मिल गई !
आज सपने उनके पूरे हो गये जब सब
जिंदगी जितनी बची हुई थी मचल गई !

Thursday, June 27, 2013

मंज़िल तक न पहुँच सकी मेरी कहानी
कहानी तो मेरी भी है वही बरसों पुरानी !
दिन यही थे चमक यही फ़िज़ा भी यही
यही रंग थे दिल में मेरे भी, आसमानी !
सियाह शब् में फ़लक़ पे तारों की सजावट
ऐसी ही होती थी तब भी तो रातें सुहानी !
इतना ज़रूर है मुझको नए गम मिले थे
सब को नहीं देती जवानी  ऐसी निशानी !
मेरा नाम मुझे दिया और दिया यह जहां
इससे ज़ियादा और क्या देती ये ज़िंदगी !

Monday, June 24, 2013



सहर से पहले मुझे जगा मत देना
नींद को मेरी  तुम उड़ा मत देना !
तस्वीरें जो दिल में सजाई हैं मेरी
उन्हें दिलसे अपने हटा मत देना !
खेल खेल लेना जितना खेल सको
मुझको मगर कभी दगा मत देना !
बड़ा शोर होता है दर्द गूंजता है जब
दुखती हुई रगों को हिला मत देना !
तन्हाईयाँ तोड़ दिया करती हैं बहुत
तन्हाइयों को  मेरा पता मत देना !
सुलगती दोपहर  में धूप के  वक्त
दरख्त की शाखों को जला मत देना !
ढूंढता फिर रहा हूँ किस्मत अपनी मैं
मेरे हाथ में क्या है  बता मत देना !

Sunday, June 23, 2013

पैसे की भेंट चढ़ गई सारी अच्छाइयां
हिस्से में रह गई खामियां परेशानियाँ !
हैरान है आम आदमी यह देखकर बहुत
जश्न मन रही हैं मिलकर सब बुराइयां !
भ्रष्टाचार लूट खसोट बलात्कार की ही
सुनने को मिलती हैं अब तो कहानियां !
नई सहर के खुदाओं का हाल मत पूछो
बाँट रहे हैं सब को दर्द की निशानियाँ !
इनके सहारे कुछ दिन जो और जी लिए
खा जाएँगी हमको हमारी ही लाचारियाँ !
सिलसिला खत्म न हुआ चलता ही रहा
सबब पूछेंगी इस बेबसी का कुर्बानियां  !

Friday, June 21, 2013

फूल भी तो कभी पत्थर का काम करते हैं
नाखून पैने हों तो खंज़र का काम करते हैं !
कौन मानेगा मगर सोलह आने सच है यह
सीना चीर कर जिंदगी को तमाम करते हैं !
रोज़ मेरी दहलीज़ पर रख जाते हैं, पत्थर
मैं सोचता हूँ वो इसी तरह सलाम करते हैं !
आज के दौर में लोग इस तरह से मिलते हैं
अकीदत रखते हैं दोस्ती का नाम करते हैं !
कुछ ऐसे भी तो किरदार हैं इस जमाने में
झुलसती धुप में भी साए का काम करते हैं !
और ऐसे भी कुछ लोग हैं इसी जमाने में
खरीदते कुछ नहीं पर मोल तमाम करते हैं
ग़ुम रहते हैं हम तो सवालों के जवाब में
वो खाली बैठे ही  सुबह से शाम करते  हैं !

Tuesday, June 18, 2013

किसी को  उस ने कबीरा बना दिया
किसी को कृष्ण की मीरा बना दिया !
उसकी रहमतों का मै जिक्र क्या करूं
मैं कांच का टुकड़ा था हीरा बना दिया !
किसी को खुशियों की सौगात दे दी
किसी को दर्द का जज़ीरा बना दिया !
धूप और बारिश की दरकार जब हुई
आसमा को इनका ज़खीरा बना दिया !
सुलगती रह गई  चरागों में  हसरतें
सितारों को उस ने जंजीरा बना दिया !
समझ में नहीं आई कारीगरी उस की
धनवान किसी को फकीरा बना दिया  !

Tuesday, June 11, 2013

फूल  टूट कर  भी  महका था
दर्द  खुशबुओं में  लिपटा  था  !
गहरा  नाता  है  सुख दुःख में
अश्क़ ख़ुशी में भी निकला था !
तितली फूल से लिपटी हुई थी
भँवरे का ताल्लुक़ भी गहरा था !
चांदनी धरती पर फैली हुई थी
चाँद आसमान पर अकेला था  !
बहुत  चीखता था  जो  तूफ़ान
दर दर भी वह ही तो भटका था !
समन्दर  से उठा था एक बादल
और सहरा में भी वह टपका था  !
कुछ तो  मेरी  ही  दीवानगी थी
कुछ  आइना  भी  बोलता  था  !
हर कोई अपना सा  था  लेकिन
यहाँ  कोई भी  नही अपना  था  !
सुख दुःख में साथ दिया जिसने
कोई और न था मेरा आइना था   !

Monday, June 10, 2013

तेरे जाने के बाद ही  शाम हो गई
शब् पूरी  अंधेरों के  नाम हो गई  !
मैक़दे की तरफ  बढ़ चले  क़दम
ज़िंदगी ही फिर जैसे ज़ाम हो गई !
आँखों से आंसु  बन  बह गया दर्द
उम्मीद मेरी मुझ पे इल्ज़ाम हो गई !
वक्त का फिर कभी पता नहीं चला
रफ़्ता रफ़्ता उम्र ही तमाम हो गई !
जिंदगी  में  ख़ुशी  जितनी  भी  थी
वक्त के हाथों सब  नीलाम हो गई  !
चल कहकहों में दफ़्न  कर दें अब
वह खामुशी  जो सरे आम हो गई !
"ना " को जिंदगी से  निकाल दें
दुनिया को इक  नई मिसाल दें  !
जिंदगी  एक  पिच की  तरह  है
गेंद को  अपनी  बड़ा उछाल  दें !
बिन पगलाए  कुछ न  मिलेगा
हिम्मत जज़्बे में अपने उबाल दें !
हर काम के लिए  ज़िद ज़रूरी है
बेचारगी को दिल से निकाल  दें !
हंसेगा  कोई  मज़ाक  बनाएगा
उनकी नजरों को नए सवाल  दें !
एवरेस्ट भी फ़तेह कर लोगे तुम
ख़ुद का ज़ुनून बाहर निकाल दें !
प्लेयर तुम चियरलीडर भी तुम
अपने फ़न को बस नये क़माल दें !