लोरियां सुनने का ख्याल आता नहीं
किसी बात पर भी मलाल आता नहीं।
तन्हा रहने का रबत पड़ गया जबसे
रूमानियत का अब ख्याल आता नहीं।
शाम आई थी जमाने बाद हसीं बनकर
सज के रहने का अब कमाल आता नहीं।
बिछड़ गये काफिले से सब एक एक कर
महफ़िल सजाने का ख्याल आता नहीं।
खिंच गया जिस्म से जोशे सुकून सारा
ज़ख्म अब भी हरा है मलाल आता नहीं।
तकता रहता हूँ जमाने को खाली बैठ
बख्शीश मांगने का ख्याल आता नहीं।
हिज्र की रुत इतनी शोख न देखी कभी
दरवाज़ा बंद करने का ख्याल आता नहीं।
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