तहरीरो के नश्तर चलाना लाजिमी है क्या
वायदे कर के निभाना लाजिमी है क्या।
दरीचा खुलने पर भी वह दिखता नहीं है
हर बार उधर ही देखना लाजिमी है क्या।
बदहवाश सा बना है हर वक़्त आदमी
बेवज़ह वफादारी निभाना लाजिमी है क्या।
सब तरह के लोग हैं बज्म में तेरी
अदब शऊर बरसेगा लाजिमी है क्या।
तेरे सवालों पर मैं चुप ही खड़ा रहा
मुजरिम मुझे ठहराना लाजिमी है क्या।
आंधियां तो आती हैं आती ही रहेंगी
हर बार पेड़ उखड़ना लाजिमी है क्या।
सियासी कठपुतली खेल खेलेगी ही
संग नाचते रहना लाजिमी है क्या।
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