वह तमाम घर में ख़ुशी बिखेर देती थी
नई तरतीब की हंसी बिखेर देती थी।
रेशमी भीगे बालों को लहरा कर के
नथुनों में महक सोंधी बिखेर देती थी।
सुबह सबेरे मेरी आँख नहीं खुलती थी
वह हंसके मुझ पे पानी बिखेर देती थी।
उसकी नर्म पलकों की ह्या सतरंगी
मेरे चेहरे पे चमक सी बिखेर देती थी।
कंधे से सरका कर के पल्लू होले से
मेरे वजूद में मस्ती बिखेर देती थी।
दिल में रूमानियत का ख्याल आने पर
नज़र में अपनी मर्ज़ी बिखेर देती थी।
इतरा कर चलती हुई छनछन करती
सहन में सारे मोती बिखेर देती थी।
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Gupta ji ye bahut hi sunder rachna hai...Badhaaii
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