सहरा समंदर जब लगने लगता है
अपनी नियत से डर लगने लगता है।
नुक्सान का गम नहीं होता मुझको
मिली खुशियों से डर लगने लगता है।
दबी रह जाती है चिंगारी राख में तो
जरा सी हवा से डर लगने लगता है।
जो मेरे नज़दीक हैं मुझे जानते कम हैं
उनसे मिल के डर लगने लगता है।
तेरे संग कुछ दूर तलक चल तो लेता
तेरे रंग में ढलने से डर लगने लगता है।
इस हद तक बढ़ जाती है दीवानगी मेरी
कभी मुझे खुद से डर लगने लगता है।
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