Tuesday, June 1, 2010

दुकान सजी हुई है

बेईमानी की दुकान सजी हुई है
हर और नुमाइश भरी हुई है।
खरीदारी में शरीक होने को
इमानदारी बहुत डरी हुई है।
खून बेचकर रोटी खरीदी है
आँख ख़ुशी से भरी हुई है।
कुछ पल की ख़ुशी के बाद
आँख फिर रोने को भरी हुई है।
गम दरदर भटक रहा है
ख़ुशी सहमी सी डरी हुई है।
ख्वाब दिखाई देंगे कैसे
आँख आंसुओं से भरी हुई है।
हर और जलसे हो रहे हैं
जनता आतंक से डरी हुई है।
खौफ में है जिंदगी हर पल
फिर भी कहीं न ठहरी हुई है।

1 comment:

  1. ह्सही कहा , दूकान सजी हुई है , और grahak भी है

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