ग़ज़ल उर्दू में कही हिंदी में लिखी जाती है
यह बड़े चाव से हर दिल की हुई जाती है।
मिसरों को बहर के पहलू में सज़ा करके
मुरीदयह काफिया रदीफ़ की हुई जाती है।
नाजों अंदाजों की कभी कसीदों की हुई
कभी बूढी नहीं हमेशा जवान हुई जाती है।
मिसाल कहीं ढूंढें से नहीं मिलती इसकी
खूबसूरती में ग़ज़ल गजाला हुई जाती है।
उलझे बालों वाले शायरों की दीवानी थी
अपने अंदाज़ में अब सबकी हुई जाती है।
शराब शबाब आशिकी की हुआ करती थी
अब हर तरह के अशआर की हुई जाती है।
कम से कम शब्दों में बड़ी बात कह जाती है
ग़ज़ल अमीर गरीब सब की हुई जाती है ।
Tuesday, June 1, 2010
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