Sunday, June 27, 2010

कभी सूरज के गोले सा तपता रहा.

कभी सूरज के गोले सा तपता रहा
कभी चाँद बनकर मचलता रहा ।
बादल बनकर उड़ जाता कभी
शबनम बनकर पिघलता रहा ।
जिसने पुकारा संग हो लिया
पाँव में एक घाव था रिसता रहा ।
मज़बूरी उसकी थी तकदीर मेरी
ख्वाब एक यतीम सा पलता रहा ।
मैं जहां था वहीँ का वहीँ रह गया
ले फन शायरी सबसे मिलता रहा।

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