तुम्हारे घर का कहीं पता नहीं मिलता
जमीं पर रहकर आसमा नहीं मिलता।
किताबें रोज़ उठाकर खंगाल लेता हूँ
नसीब का कहीं लिखा नहीं मिलता ।
जरा सी धूप बदन को बुरी लगती है
बिन इसके फूल भी निखरा नहीं मिलता।
सूज़ जाती हैं आँखें रो रो कर बहुत
अश्क बहने को और रस्ता नहीं मिलता।
दूधिया रातों में बैचेन समंदर के कभी
मचले पहलू में चाँद उतरा नहीं मिलता।
लिख देता रोज़ नयी कहानी मुहब्बत पर
रेत पर कल का ही लिखा नहीं मिलता ।
हम भी खुश हो लेते ,न रोते नाम यदि
वसीयत में दूसरा लिखा नहीं मिलता ।
Monday, May 31, 2010
Saturday, May 29, 2010
नन्ही बिटिया की कहानी
बिटिया अब सयानी हो गयी
बड़ी होकर नूरानी हो गयी।
पांच हाथ की साडी पहनकर
उमंग उसकी रूमानी हो गयी।
परियों की कहानी सुनना
अब आदत पुरानी हो गयी ।
गुड्डे- गुड़ियों संग खेलना
भी अब एक कहानी हो गयी।
कल्पनाओं में भ्रमण करती
खुशियों की दीवानी हो गयी।
सोलह श्रृंगार करके अपने
पिया की महारानी हो गयी।
समय के साथ साथ बिटिया
पूरी हिन्दुस्तानी हो गयी।
समय जैसे बीता तो अपने
बच्चों की नौकरानी हो गयी।
बेटी- बेटों को सुनाती फिर
परियों की याद सुहानी हो गयी।
बच्चों की सेवा करने में ही
उसकी खत्म जवानी हो गयी।
समय आगे और बढ़ा तो
फिर एक नयी कहानी हो गयी।
परियों की कहानियां अब
उसको याद जुबानी हो गयी।
अपना फ़र्ज़ निभाती निभाती
आत्म संतोष की कहानी हो गयी।
नाती - पोतों के संग खेलती
वह बूढी दादी नानी हो गयी।
बाबुल के आँगन की नन्ही
बिटिया कितनी सयानी हो गयी।
आत्म संतोष की कहानी हो गयी
बिटिया दादी -नानी हो गयी ।
बड़ी होकर नूरानी हो गयी।
पांच हाथ की साडी पहनकर
उमंग उसकी रूमानी हो गयी।
परियों की कहानी सुनना
अब आदत पुरानी हो गयी ।
गुड्डे- गुड़ियों संग खेलना
भी अब एक कहानी हो गयी।
कल्पनाओं में भ्रमण करती
खुशियों की दीवानी हो गयी।
सोलह श्रृंगार करके अपने
पिया की महारानी हो गयी।
समय के साथ साथ बिटिया
पूरी हिन्दुस्तानी हो गयी।
समय जैसे बीता तो अपने
बच्चों की नौकरानी हो गयी।
बेटी- बेटों को सुनाती फिर
परियों की याद सुहानी हो गयी।
बच्चों की सेवा करने में ही
उसकी खत्म जवानी हो गयी।
समय आगे और बढ़ा तो
फिर एक नयी कहानी हो गयी।
परियों की कहानियां अब
उसको याद जुबानी हो गयी।
अपना फ़र्ज़ निभाती निभाती
आत्म संतोष की कहानी हो गयी।
नाती - पोतों के संग खेलती
वह बूढी दादी नानी हो गयी।
बाबुल के आँगन की नन्ही
बिटिया कितनी सयानी हो गयी।
आत्म संतोष की कहानी हो गयी
बिटिया दादी -नानी हो गयी ।
यकीन रख
कभी न कभी अँधेरा छंटेगा यकीन रख
निगाहों में सबेरा बसेगा यकीन रख ।
माना आग ने तेरा पोर पोर जला दिया
चिनार का मौसम भी आएगा यकीन रख ।
यह कैसा न्याय है हर बात झूठी हो गयी
जल्द ही खुलासा हो जायेगा यकीन रख ।
बहलाने वाले ने खूबसूरती से बहला दिया
हर मुद्दा फिर से उछलेगा यकीन रख ।
उठा के अपने हाथ कुछ मांग तो ले उससे
बिगड़ा मुकद्दर जरूर सम्भलेगा यकीन रख ।
निगाहों में सबेरा बसेगा यकीन रख ।
माना आग ने तेरा पोर पोर जला दिया
चिनार का मौसम भी आएगा यकीन रख ।
यह कैसा न्याय है हर बात झूठी हो गयी
जल्द ही खुलासा हो जायेगा यकीन रख ।
बहलाने वाले ने खूबसूरती से बहला दिया
हर मुद्दा फिर से उछलेगा यकीन रख ।
उठा के अपने हाथ कुछ मांग तो ले उससे
बिगड़ा मुकद्दर जरूर सम्भलेगा यकीन रख ।
नहीं मिलता
मल्टीप्लेक्स तो मिलते हैं थिअटर नहीं मिलता
अब दीवार पर टंगा कोई कलेंडर नहीं मिलता ।
कभी रेडियो का होना स्टेट्स सिम्बल होता था
अब बजता कहीं रेडियो ट्रांजिस्टर नहीं मिलता ।
गाँव दर गाँव उजड़ते हैं तो एक शहर बस्ता है
शहर में गाँव का कोई खँडहर नहीं मिलता ।
किताबें दर्द की बहुत मिलती हैं शहर में
बस ख़ुशी का ही कोई चेप्टर नहीं मिलता ।
गुरु और चेले का रिश्ता भी पैसे में बिक गया
अब टयूटर तो मिलते हैं टीचर नहीं मिलता ।
शुक्र है गाँव मे इंसानियत अभी बाकी है
शहर मे गाँव जैसा कोई करेक्टर नहीं मिलता ।
अब दीवार पर टंगा कोई कलेंडर नहीं मिलता ।
कभी रेडियो का होना स्टेट्स सिम्बल होता था
अब बजता कहीं रेडियो ट्रांजिस्टर नहीं मिलता ।
गाँव दर गाँव उजड़ते हैं तो एक शहर बस्ता है
शहर में गाँव का कोई खँडहर नहीं मिलता ।
किताबें दर्द की बहुत मिलती हैं शहर में
बस ख़ुशी का ही कोई चेप्टर नहीं मिलता ।
गुरु और चेले का रिश्ता भी पैसे में बिक गया
अब टयूटर तो मिलते हैं टीचर नहीं मिलता ।
शुक्र है गाँव मे इंसानियत अभी बाकी है
शहर मे गाँव जैसा कोई करेक्टर नहीं मिलता ।
Friday, May 28, 2010
फिसल जाती है
मुट्ठी से रेत फिसल फिसल जाती है
तकदीर पल भर में बदल जाती है ।
आदमी सोता ही रह जाता है
रात अल-सुबह में बदल जाती है।
बोतल में बंद शांत बनी रहती है
बाहर आते ही छलक जाती है।
गले से नीचे उतरती है जैसे ही
तबियत शराब की मचल जाती है।
जिंदगी का क्या है जब बहलती है
जरा सी बात से बहल जाती है।
तकदीर पल भर में बदल जाती है ।
आदमी सोता ही रह जाता है
रात अल-सुबह में बदल जाती है।
बोतल में बंद शांत बनी रहती है
बाहर आते ही छलक जाती है।
गले से नीचे उतरती है जैसे ही
तबियत शराब की मचल जाती है।
जिंदगी का क्या है जब बहलती है
जरा सी बात से बहल जाती है।
माँ नहीं होती
बही खाते रखने वाली कोई माँ नहीं होती
ममता का हिसाब रखने वाली माँ नहीं होती ।
अपने प्यार का घरोंदा बनाते हुए किसी
इकरारनामे पर दस्तखत कराती माँ नहीं होती ।
शरारतों अठखेलियों का चैक संभाले रखती है
भीड़ में उसे भुनाने वाली माँ नहीं होती ।
माँ का दिल तो विशाल होता है बहुत
छोटे दिल वाली कोई माँ नहीं होती।
दुलार करती हुई माँ डांट तो देती है
बद्दुआ देने वाली कभी माँ नहीं होती।
ममता का हिसाब रखने वाली माँ नहीं होती ।
अपने प्यार का घरोंदा बनाते हुए किसी
इकरारनामे पर दस्तखत कराती माँ नहीं होती ।
शरारतों अठखेलियों का चैक संभाले रखती है
भीड़ में उसे भुनाने वाली माँ नहीं होती ।
माँ का दिल तो विशाल होता है बहुत
छोटे दिल वाली कोई माँ नहीं होती।
दुलार करती हुई माँ डांट तो देती है
बद्दुआ देने वाली कभी माँ नहीं होती।
चिंता रहती है .
हर समय आदमी को पेट की चिंता रहती है
क्या पकाएं क्या खाएं इसकी चिंता रहती है ।
डॉक्टर को दिखाने पर भी तसल्ली होती नहीं
दवा ठीक मिली की नहीं ,यही चिंता रहती है ।
चेहरे पर उम्र की परछाइयाँ दिखाई न दें
बढती उम्र के साथ बस यही चिंता रहती है ।
दिन गुजार लेता है आदमी कहीं भी कैसे भी
शाम ढलते ही घर लौटने की चिंता रहती है ।
अपना न होकर रह सका यह दिल कभी भी
इसे किसी का बनकर रहने की चिंता रहती है ।
क्या पकाएं क्या खाएं इसकी चिंता रहती है ।
डॉक्टर को दिखाने पर भी तसल्ली होती नहीं
दवा ठीक मिली की नहीं ,यही चिंता रहती है ।
चेहरे पर उम्र की परछाइयाँ दिखाई न दें
बढती उम्र के साथ बस यही चिंता रहती है ।
दिन गुजार लेता है आदमी कहीं भी कैसे भी
शाम ढलते ही घर लौटने की चिंता रहती है ।
अपना न होकर रह सका यह दिल कभी भी
इसे किसी का बनकर रहने की चिंता रहती है ।
Thursday, May 27, 2010
अपनी बेकद्री का क़र्ज़
पानी की बर्बादी व तबाही यूँ ही अगर होती रही
जरूरत भर पानी को इन्सान मोहताज़ बन जायेगा।
पानी मयस्सर नहीं होगा खुश्की बढती जाएगी
धरती का अंत: भी जल विहीन बन जायेगा।
धरती के अन्दर पानी का जलस्तर गिरता जायेगा
सम्र्सिब्ल जेत्प्म्प का हलक सुख जायेगा।
पानी मिलेगा न पीने को न मिलेगा जीने को
पोखरे नदियाँ ताल सब सुखा पड़ जायेगा।
अपनी बेकद्री का क़र्ज़ पानी कुछ यूँ चुकाएगा
सब तरसेंगे पानी को पानी बस आँखों में रह जाएगा।
जरूरत भर पानी को इन्सान मोहताज़ बन जायेगा।
पानी मयस्सर नहीं होगा खुश्की बढती जाएगी
धरती का अंत: भी जल विहीन बन जायेगा।
धरती के अन्दर पानी का जलस्तर गिरता जायेगा
सम्र्सिब्ल जेत्प्म्प का हलक सुख जायेगा।
पानी मिलेगा न पीने को न मिलेगा जीने को
पोखरे नदियाँ ताल सब सुखा पड़ जायेगा।
अपनी बेकद्री का क़र्ज़ पानी कुछ यूँ चुकाएगा
सब तरसेंगे पानी को पानी बस आँखों में रह जाएगा।
आदत है
ख्वाबों को आते रहने की आदत है
आदतों को बदलते रहने की आदत है।
अपना न होकर रह सका दिल कभी
इसे किसी दिल में रहने की आदत है।
अपने पैरों पर खड़ा हो जाता है मासूम जब
माँ के दिल को बल्लियों उछलने की आदत है।
सुबह लालिमा उभरती है आसमान में
उदास शाम को रोज़ ढलने की आदत है।
लम्हा लम्हा धूप उतरती जाती है ज्यों
उम्र को धीरे धीरे गुजरने की आदत है।
मुफलिसी का दर्द वही समझता है
जिसके पेट को भूखे रहने की आदत है।
मेरे हौसलों का दम तू जानता तो है
मुझे हर हल में खुश रहने की आदत है।
चलने दे सफ़र में अकेला ही मुझे
मुझे दुनिया की नज़र में रहने की आदत है।
आदतों को बदलते रहने की आदत है।
अपना न होकर रह सका दिल कभी
इसे किसी दिल में रहने की आदत है।
अपने पैरों पर खड़ा हो जाता है मासूम जब
माँ के दिल को बल्लियों उछलने की आदत है।
सुबह लालिमा उभरती है आसमान में
उदास शाम को रोज़ ढलने की आदत है।
लम्हा लम्हा धूप उतरती जाती है ज्यों
उम्र को धीरे धीरे गुजरने की आदत है।
मुफलिसी का दर्द वही समझता है
जिसके पेट को भूखे रहने की आदत है।
मेरे हौसलों का दम तू जानता तो है
मुझे हर हल में खुश रहने की आदत है।
चलने दे सफ़र में अकेला ही मुझे
मुझे दुनिया की नज़र में रहने की आदत है।
Wednesday, May 26, 2010
जन्म दिन तो बहाना था
जन्म दिन बहाना बना तुम्हे पास बुलाने का
कुछ पल संग बैठ कर मिलने मुस्कराने का।
तुम्हारा आना दिल को अच्छा लगा बहुत
मन में आगया था कुछ सुनने सुनने का।
कुछ पल संग बैठ कर मिलने मुस्कराने का।
तुम्हारा आना दिल को अच्छा लगा बहुत
मन में आगया था कुछ सुनने सुनने का।
रौनके मेरे घर आयी
आप आये तो रौनकें मेरे घर आयी
चमन की तमाम बहारें मेरे घर आयी।
हैरान हूँ अपने मुक़द्दर पर मैं आज
खुशियाँ लगके कतारें मेरे घर आयी.
चमन की तमाम बहारें मेरे घर आयी।
हैरान हूँ अपने मुक़द्दर पर मैं आज
खुशियाँ लगके कतारें मेरे घर आयी.
Tuesday, May 25, 2010
ख़ास खबर
जब उनकी खूबसूरती का चरचा आता है
लबों पर हमारा भी ज़िक्र उभर जाता है .
खबर एक ख़ास खबर बन जाती है
किस्सा गली शहर का बन जाता है।
लोग मुझे अज़ब नज़र से तकते हैं
शहर में जैसे कोई अजूबा दिख जाता है।
फिर कुछ और हुआ हो न हुआ हो
उन्हें देख मेरा भी सब्र बिखर जाता है।
लबों पर हमारा भी ज़िक्र उभर जाता है .
खबर एक ख़ास खबर बन जाती है
किस्सा गली शहर का बन जाता है।
लोग मुझे अज़ब नज़र से तकते हैं
शहर में जैसे कोई अजूबा दिख जाता है।
फिर कुछ और हुआ हो न हुआ हो
उन्हें देख मेरा भी सब्र बिखर जाता है।
उदासी अच्छी नहीं लगती
ख़ूबसूरत चेहरों पर उदासी अच्छी नहीं लगती
नए घर में चीजें पुरानी अच्छी नहीं लगती।
जिनसे पहचान है मेरे होने की, बच्चों को दीवार पर
तस्वीर मेरे उन बजुर्गों की अच्छी नहीं लगती ।
दोस्ती कोई पल दो पल की बात नहीं हुआ करती
चाहत मजबूरियों में पली अच्छी नहीं लगती।
बर्दाश्त करने की हद से अब दम घुटने लगा है
वक़्त की हर वक़्त की मार भी अच्छी नहीं लगती।
कोई मेरे दर्दो-गम को सराहेगा कब तलक
हर वक़्त की शायरी भी अच्छी नहीं लगती।
नए घर में चीजें पुरानी अच्छी नहीं लगती।
जिनसे पहचान है मेरे होने की, बच्चों को दीवार पर
तस्वीर मेरे उन बजुर्गों की अच्छी नहीं लगती ।
दोस्ती कोई पल दो पल की बात नहीं हुआ करती
चाहत मजबूरियों में पली अच्छी नहीं लगती।
बर्दाश्त करने की हद से अब दम घुटने लगा है
वक़्त की हर वक़्त की मार भी अच्छी नहीं लगती।
कोई मेरे दर्दो-गम को सराहेगा कब तलक
हर वक़्त की शायरी भी अच्छी नहीं लगती।
अब तो खुशियाँ भी किस्तवार मिला करती हैं
अब तो खुशियाँ भी किस्तवार मिला करती हैं
उधार में ली गयी चीजें उपहार लगा करती हैं।
लक्ष्मी की मूर्तियाँ तराशता है गरीबी में रहता है
छेनियाँ कहाँ किस्मत संवार दिया करती हैं।
जिसने बक्शा था कड़ी धूप में साया कभी
ख्वाहिशें उसी पेड़ को काट दिया करती हैं।
जिंदगी पर पहरा है मुक़द्दर का सदियों से
खुशियाँ नहीं बार बार साथ दिया करती हैं।
सुख दूर से गुजरते हैं गुजरते ही चले जाते हैं
पीड़ा है जो उम्र भर साथ दिया करती हैं।
उधार में ली गयी चीजें उपहार लगा करती हैं।
लक्ष्मी की मूर्तियाँ तराशता है गरीबी में रहता है
छेनियाँ कहाँ किस्मत संवार दिया करती हैं।
जिसने बक्शा था कड़ी धूप में साया कभी
ख्वाहिशें उसी पेड़ को काट दिया करती हैं।
जिंदगी पर पहरा है मुक़द्दर का सदियों से
खुशियाँ नहीं बार बार साथ दिया करती हैं।
सुख दूर से गुजरते हैं गुजरते ही चले जाते हैं
पीड़ा है जो उम्र भर साथ दिया करती हैं।
आईने काले पड़ गए
दीवारें कल ही पुती थी आज जाले लग गए
धूप दिन भर खूब खिली थी रात पाले पड़ गए।
फैसले मत बदलना डरकर किसी के कहने से
जो चीखे बहुत थे सबके होठों पे ताले पड़ गए।
कुछ पल के लिये ठहरकर दिल को कहीं उंडेल दे
तडपेगा जब लगेगा तन्हाइयों के छाले पड़ गए।
जरा सी हिम्मत दिखाकर तूने कर ली जो गुजर
कोई न जानेगा तुझे रोटियों के लाले पड़ गए।
अपने चेहरे पर लगी स्याही को तो पोंछ ले
उजाला न हुआ तो लगेगा आईने काले पड़ गए।
धूप दिन भर खूब खिली थी रात पाले पड़ गए।
फैसले मत बदलना डरकर किसी के कहने से
जो चीखे बहुत थे सबके होठों पे ताले पड़ गए।
कुछ पल के लिये ठहरकर दिल को कहीं उंडेल दे
तडपेगा जब लगेगा तन्हाइयों के छाले पड़ गए।
जरा सी हिम्मत दिखाकर तूने कर ली जो गुजर
कोई न जानेगा तुझे रोटियों के लाले पड़ गए।
अपने चेहरे पर लगी स्याही को तो पोंछ ले
उजाला न हुआ तो लगेगा आईने काले पड़ गए।
Monday, May 24, 2010
आँखों को बेनकाब कर देगा
आँखों को बेनकाब कर देगा
वो मिलेगा तो बेख्वाब कर देगा।
संदल से महकते जिस्म को मेरे
अपनी खुशबू से गुलाब कर देगा।
इस क़दर चूमेगा हंसके पेशानी
अपनी छुहन से सैलाब कर देगा।
उसका रुका रुका सा लहजा
नर्म हवाओं को बेताब कर देगा।
बैचेनी का आलम होगा इतना
तमाम उम्र का हिसाब कर देगा।
पिघल कर पत्थर मोम हो जायेगा
वो इतना लाजवाब कर देगा।
रिफाक्ते-शब् में प्यासा चकोर
मुझे पिघलता महताब कर देगा।
वो मिलेगा तो बेख्वाब कर देगा।
संदल से महकते जिस्म को मेरे
अपनी खुशबू से गुलाब कर देगा।
इस क़दर चूमेगा हंसके पेशानी
अपनी छुहन से सैलाब कर देगा।
उसका रुका रुका सा लहजा
नर्म हवाओं को बेताब कर देगा।
बैचेनी का आलम होगा इतना
तमाम उम्र का हिसाब कर देगा।
पिघल कर पत्थर मोम हो जायेगा
वो इतना लाजवाब कर देगा।
रिफाक्ते-शब् में प्यासा चकोर
मुझे पिघलता महताब कर देगा।
Tuesday, May 11, 2010
तेरे शहर में
तेरे शहर में लफ्ज़ नहीं मिलते
करने को बात शख्स नहीं मिलते।
देख कर दुःख दर्द किसी का यहाँ
बहते आँखों से अश्क नहीं मिलते।
जरा सी बात पर नज़र फेर लेते हैं
लोग यहाँ मुसलसल नहीं मिलते।
हसरतें बगल से निकली चली जाती हैं
लेकर दिलों में उल्फत नहीं मिलते।
सूरज निकलता है चाँद भी निकलता है
करते अंधेरों से सुलह नहीं मिलते।
सर-ता-पा समन्दर में भीगे तो मिलते हैं
बारिश में लोग करते रक्स नहीं मिलते।
पत्थरों से चीने हुए तेरे शहर में
दिलों के फैले दश्त नहीं मिलते।
करने को बात शख्स नहीं मिलते।
देख कर दुःख दर्द किसी का यहाँ
बहते आँखों से अश्क नहीं मिलते।
जरा सी बात पर नज़र फेर लेते हैं
लोग यहाँ मुसलसल नहीं मिलते।
हसरतें बगल से निकली चली जाती हैं
लेकर दिलों में उल्फत नहीं मिलते।
सूरज निकलता है चाँद भी निकलता है
करते अंधेरों से सुलह नहीं मिलते।
सर-ता-पा समन्दर में भीगे तो मिलते हैं
बारिश में लोग करते रक्स नहीं मिलते।
पत्थरों से चीने हुए तेरे शहर में
दिलों के फैले दश्त नहीं मिलते।
अपना नसीब
न हुआ कभी न हुआ नसीब ,अपना नसीब
सुधरा न कभी बिगड़ा ही रहा अपना नसीब।
बुरा तो था पर इतना भी तो बुरा नहीं था
कि अपने को ही बुरा लगने लगा अपना नसीब।
सितारों ने चाहा था मुझे हर गम से बचाना
किसी भी कीमत पर न बदला अपना नसीब।
हाथ उठाकर माँगी थी आँखों ही आँखों में
दुआओं से भी नहीं बदला अपना नसीब।
लम्बे समय से साथ रह रहा था अपने
सदा बेगाना बन कर रहा अपना नसीब।
चैन मिला था किसी के शाने पे रख के सीर
तब भी सिसकता रहा अपना नसीब।.
दिल करता है तराश दूं छेनी हथोड़े से
लगता है फिर भी न बदलेगा अपना नसीब।
सुधरा न कभी बिगड़ा ही रहा अपना नसीब।
बुरा तो था पर इतना भी तो बुरा नहीं था
कि अपने को ही बुरा लगने लगा अपना नसीब।
सितारों ने चाहा था मुझे हर गम से बचाना
किसी भी कीमत पर न बदला अपना नसीब।
हाथ उठाकर माँगी थी आँखों ही आँखों में
दुआओं से भी नहीं बदला अपना नसीब।
लम्बे समय से साथ रह रहा था अपने
सदा बेगाना बन कर रहा अपना नसीब।
चैन मिला था किसी के शाने पे रख के सीर
तब भी सिसकता रहा अपना नसीब।.
दिल करता है तराश दूं छेनी हथोड़े से
लगता है फिर भी न बदलेगा अपना नसीब।
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