Saturday, May 23, 2009

में क्या करता हूँ

आईने ने तो बहुत खूबसूरत
लगने की गवाही दी थी
कोई मुझे देखा करे
मैंने किसीको यह हक न दिया

वक्त ने भी मेरी तनहाइयाँ
पहचान ली थी
मेंरे गरूर ने
मुझे किसी आँख में
रहने न दिया

रह रह कर कईं सिलसिले
याद आ रहे हैं आज
काश ख़ुद को भूले
किसी महफिल में
राह लिए होते

आज वक्त ही वक्त है
काटे से नहीं कट ता
कभी मोहल्लत मिल्ली होती
अपनों से गले मिल लिए होते

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