Friday, May 29, 2009

में चीनी मिटटी का प्याला

मैं चीनी मिटटी का प्याला ,
तुम चाय मीठी मीठी सी
हर सुबह सवेरे अपने खालीपन को ,
तुमसे भरता हूँ।
तुमसे मिलने को उत्सुक हो सब ,
याद मुझे ही करते हैं । मेरी ठिठुरन को तुम अपनी
गर्मी से सिहरा जाती हो ।
कितना भी दूर रहूँ तुमसे
तुम्हारी खुशबू से ही महकता हूँ।
रिश्तों का मतलब क्या होता है ,
मैंने तुमसे जाना है ।
तुम्हारे स्पर्श के अनुमान से ,
मैं बौराया रहता हूँ ।

तुमसे मिलने की धुन में मैं ,
खनखन बजता रहता हूँ ।

डर एक लगा रहता है मुझको ,
टूट न जाऊं गिरकर मैं ।
फ़िर भी रूप बदलकर मैं ,
तुम्हे गले लगाये रहता हूँ ।
मेरे दायरे में क़ैद हुई तुम ,
छलकी छलकी जाती हो ।
जितना भी तुमसे भरता हूँ मैं ,
उतना ही रिक्त हुआ रहता हूँ।

1 comment:

  1. Wah! satyendra uncle...
    aapki kavitayen padhkar achcha laga.
    you are a great talent.
    SHUBHAM PANDEY.....

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