Friday, May 25, 2018

              

        तीन लाइन की शायरी 

बुझ न सकी आग जो पानी में लगी थी 
हम बेवज़ह रुसवाइयों के नाम हो गए 
मिले भी नहीं मुफ्त में बदनाम हो गए 

ख़ुश्बू  देर तक़ कहीं टिक नहीं सकी
कोशिशें बहुत की सब नाकाम हो गए 
होने को  दुनिया के  सब काम हो गए 

इलाज़ के इंतज़ार में  जान निकल गई
हम जीते जी ज़िंदगी की शाम हो गए 
ज़िम्मे  हमारे बहुत सारे  काम हो गए 

वो गए तो साथ ले गए पहचान मेरी भी 
हम तो जैसे अब खाली ही ज़ाम हो गए 
तन्हाइयों के ही अब हम पैग़ाम हो गए

दो वाक़यात में ही  सिमटी  है ज़िंदगी
हम  कब पैदा हुए  कब तमाम हो गए
ता ज़िंदगी  हम दर्द का मुक़ाम हो गए 

         ------  सत्येंद्र गुप्ता 
             
   

Tuesday, May 15, 2018


सेवा में
           लिम्का बुक  रिकार्ड्स
 
महोदय ,
        मैंने  हिंदी  शायरी में एक नया प्रयास किया है।  दो मिसरो  के
 शेर को मैंने तीन लाइन में कहने का प्रयास किया है।   तीसरी लाइन
के जोड़ने से  शेर  का  वुजूद और बढ़गया।  तीसरी लाइन ने  दोनों
मिसरों   में चार चाँद  लगा  दिए। और उन्हें बुलंदियों तक  पहुंचा दिया।
मैंने इस विधा को नाम  दिया है तीन लाइन की शायरी
          उदहारण के लिए


    ---  तीन लाइन की शायरी   ---

परदेस चले गए थे कमाने के वास्ते 
लौट आये शक़्ल किसको  दिखाते 
अपनी बेबसी भी किसको दिखाते 

शान से ले जाती है जिसको भी चाहे 
दर पर खड़ी मौत फ़क़ीर नहीं होती 
उसके हाथ में भी  तहरीर नहीं होती 

तेरा हुस्न इस क़दर तराशा है उसने 
जैसे तुझको अपने लिए ही बनाया है
ग़ुरूर तुझमें क्या उसमे भी समाया है 

फ़ूल की तरह महकता है कागज़ 
जिस पर मैंने  तेरा नाम लिखा  है 
लगता है तेरी खुशबु का टुकड़ा है 

जिसने रास्ता दिया था बहने के वास्ते 
पानी ने काट दिया उस ही पत्थर को 
जाने क्या हो गया है इस मुक़द्दर को 

पाँव डुबोए बैठे थे  पानी में झील के 
चाँद देखकर उन्हें हद से गुज़र गया
आसमां से उतर कर पाँव पे गिर गया 

         मेरे पास ऐसी ऐसी तीन लाइन की लगभग 
हज़ार शायरी  हैं।  मेरी एक किताब भी इस विधा 
पर छप रही है।  इससे पहले मेरे नौ काव्य संग्रह 
भी छप चुके हैं। 
         ऊपर लिखी विधा अभी तक हिंदी साहित्य 
में प्रयोग नहीं की गई है। मैंने ही सब से पहले इस 
को लिखा है आपसे अनुरोध है  मेरी तीन लाइन की 
शायरी की इस  विधा को  लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड 
में स्थान दिलाकर  मुझे और साहित्य को गौरान्वित 
करेंगे ।  धन्यवाद ,
                                    सतेंद्र कुमार गुप्ता 
                              कृष्ण धाम ,कोटद्वार रोड 
                                  जाप्ता गंज। नजीबाबाद 
                               जिला -बिजनौर। उत्तर प्रदेश 


Friday, May 11, 2018

   तीन लाइन की शायरी
      मेरा नया प्रयास

फासला तो रहना चाहिए बीच में
आग से छेड़खानी अच्छी नहीं
हवा की तेज़ रवानी अच्छी नहीं

वह ख़फा हो जाएंगे देख लेना
बडो से बदजुबानी अच्छी नहीं
इतनी  बदगुमानी अच्छी  नहीं

तेरा ही नशा नहीं उतरता जिंदगी
जाने किस किस्म की तू शराब है
तुझ में भी बड़े गज़ब का  ताब है

फाका मस्ती में कट गई उम्र सारी
इतना भी ईमानदार नहीं हुआ जाता
टूटी किश्ती में सवार नहीं हुआ जाता

जब से तुम बस गए आकर यहाँ
यह मौहल्ला बड़ा अमीर हो गया
खूबसूरती की यह जागीर हो गया

ऊंघता रहा बिस्तर सो न सका
तेरी खुशबू नखरे दिखाती रही
तेरी याद रात भर ही आती रही

हजार आफतें लिपटती हैं कदमों से
फिर भी तो लाचार नहीं हुआ जाता
बीमार के साथ बीमार नहीं हुआ जाता
---------सत्येन्द्र गुप्ता


तीन मिसरो की शायरी मेरी एक नई  विधा है इसमें
दो मिसरो में मैंने एक मिसरा और जोड़ दिया जिससे
पहले दोनों मिसरो का वज़ूद और बढ़ गया और उनकी
क़ैफ़ियत बहुत ऊंचाई तक पहुँच गयी मैंने इस मिसरे
का नाम रखा है मिसरा ए ख़ास।
उदहारण के लिए 

आज तक वह आईना न बना 
मुझे मुझ से रूबरू करा देता
मुझको मेरी औकात बता देता

परदेस चले गए थे कमाने के वास्ते
लौट आए शक़्ल किसको दिखाते 
दस्ताने दर्द किस किसको सुनाते 

शान से ले जाती है जिसे भी चाहे
दर पर खड़ी मौत फकीर नहीं होती
उसके पास  कोई तहरीर नहीं होती

फूल की तरह महकता है कागज़
जिस पर मैंने तेरा नाम लिखा है
लगता है तेरी खुशबू का टुकड़ा है

तीन लाइन का ही खत था
सारी बातें जरूरी रह गईं
चाहतें सब अधूरी रह गईं
---------सत्येन्द्र गुप्ता
      कोट द्वार रोड नजीबाबाद
  मो  9837024900  

Tuesday, May 1, 2018

                
                                              तीन लाइन की शायरी 

           एक शेर में दो लाइन यानी दो मिसरे होते हैं। पहली लाइन मिसरा ए ऊला और दूसरी लाइन 
मिसरा ए सानी  कहलाती है। शेर अपने आप में पूरा तब तलक़ नहीं होता जब तक पहले मिसरे को 
दूसरे मिसरे का माक़ूल ज़वाब न मिले। यह भी कह सकते हैं की पहली लाइन मिसरा ए दावा होती 
है और दूसरी लाइन मिसरा ए दलील होती है। 
          मैंने एक नया प्रयास किया है।  मैंने इसमें एक लाइन और जोड़ने की कोशिश की है जिससे 
पहली दोनों लाइनों का वुज़ूद और बढ़ गया।  शेर की क़ैफ़ियत  में चार चाँद लग गए। तीसरी लाइन 
शेर को और बुलंदियों तक ले गई । मैंने इस विधा का नाम दिया है   --.  तीन लाइन की शायरी ---
उदहारण के लिए ,

                   
परदेस चले गए थे क़माने के वास्ते

लौट आये  शक़्ल  किसको दिखाते 
बेबसी अपनी किस किसको बताते 


शान से ले जाती है जिसको  भी चाहे 

दर पर खड़ी मौत  फ़क़ीर नहीं होती 
उसके हाथ में कोई तहरीर नहीं होती 


चंद लाइन का ही ख़त था 

बातें सारी ज़रूरी रह गई 
ख़्वाहिशें हीअधूरी रह गई 



तू मिसरा है जिस ग़ज़ल का ज़िंदगी 

उस  ग़ज़ल के अशआर हम भी हैं 
तेर इश्क़ के तो  हक़दार हम भी हैं 



उसकी शान में कुछ तोअता  कर

हर  चीज़  मिल जाती  है दुआ  से
मांग कर तो देख ले तू भी खुदा से  



उम्र दराज़ हो  जाता है बचपन

उसके ख़िलौने बदलते रहते हैं 
शब्दों के मायने बदलते रहते हैं


बदसूरत हो गया है चेहरा बहुत

नया शीशा मंगाने से क्या फायदा
झूठी शान दिखाने से क्या फायदा 

     तीसरी लाइन शेर की बुनियादी विशेषता को और मुखर कर रही है। शेर की क़ैफ़ियत को 
नया अंदाज़ दे रही है। आशा है आपको मेरा ये प्रयास ज़रूर पसंद आएगा।  धन्यवाद ,
                                                                             -----------   सत्येंद्र गुप्ता
 
                                                                                  मो -9837024900