Friday, October 18, 2013

ख़ुद से भी मिलना मिलाना छोड़ दिया
अब हमने एहसान जताना छोड़ दिया। 
बहुत प्यार था  रूह से, ज़िस्म से हमें
अब अपने बारे में बताना  छोड़ दिया।
सुना है जबसे आइना झूठ बोलता नहीं
उसे देखने का शौक़ पुराना छोड़ दिया।
हादसे इस क़दर से गुज़रे गये  हम पर
ख़ुद जलते रहे अश्क़ बहाना छोड़ दिया 
पता चला ज़िंदगी  ही चार  दिन की है 
हमने अब खुद पर इतराना छोड़ दिया। 
जीते ज़ी यह दुनिया न हुई  किसी की 
दीवारों से ही  सर टकराना छोड़ दिया।
गिलास हाथ में था , याद तेरी आ गई 
फिर तो हमने पीना पिलाना छोड़ दिया।  

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (19-10-2013) "शरदपूर्णिमा आ गयी" (चर्चा मंचःअंक-1403) पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. सुना है जबसे आइना झूठ बोलता नहीं
    उसे देखने का शौक़ पुराना छोड़ दिया।
    हादसे इस क़दर से गुज़रे गये हम पर
    ख़ुद जलते रहे अश्क़ बहाना छोड़ दिया
    बहुत बढिया लिखते हैं आप।

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