Friday, February 24, 2012

बचपन में हम अमीर थे गरीब हो गये
जिंदगी के ज़्यादा अब करीब हो गये।
ज़हाज कागज़ों के उड़ाते थे शौक से
हौसले वो सारे बे -तरतीब हो गये।
दूर हो गये आइना ए दिल से इतना
चेहरे दिखने में अजीबो गरीब हो गये।
हवा के मिजाज़ का भी पता न चला
हुस्नो इश्क ही दिल के रकीब हो गये।
रंगो लिबास वक़्त के संग बदल गया
रिश्तों के ढंग भी सब अज़ीब हो गये।
तितलियों के खेल पर पाबंदी लग गई
झूठी कहानियों के अब करीब हो गये।




Monday, February 20, 2012

लिए हाथ में कटोरा भिखारी मांग रहा है नोट
दिल में मगर उसके जरा सा भी नहीं है खोट।
अपनी अपनी भीख है, अपना अपना कटोरा
भिखारी तो भिखारी है, वो नोट मांगे या वोट।

Sunday, February 19, 2012

जलती हुई शमां के परवाने बहुत हैं
हर हसीन रात के अफ़साने बहुत हैं।
तन्हां अपने चाँद को न छोड़ना कहीं
शबे चांदनी में चाँद के दिवाने बहुत हैं।
यारों हमें दिल से पत्थर न समझना
हमको अपने गम अभी छुपाने बहुत हैं।
अलग क़ाफिले से मैं चल नहीं सकता
अभी तो मेरे साथ में ज़माने बहुत हैं।
प्यास उजाले की बढ़ रही है हर घड़ी
मुझे चिराग़ अभी तो जलाने बहुत हैं।
हम ज़ाम पी लेंगे,जब भी प्यास लगेगी
मेरे लिए उन आँखों के पैमाने बहुत हैं।
गेसू उनके बिखरे तो किस्मत संवर गई
ख्वाब उनके संग हमे सजाने बहुत हैं।
अपना मसीहा उनको बना तो लिया
मगर वे अपने आप में सयाने बहुत हैं।
एक ज़गह दिल लगे भी तो लगे कैसे
रहने को अब दिल के ठिकाने बहुत हैं।





Sunday, February 5, 2012

दोस्तों,
१८ जनवरी २०१२ को मेरी गजलों की एक ओडियो अल्बम * अनजाने हो गये * सोनिक इंटरप्राएइसेस ,दिल्ली द्वारा पूरे भारत में लोंच की गई है। इसकी कुछ ग़ज़लें हैं......
मैखाने में जरा कभी आकर तो देखिये....गायक -- सन्न्वर अली---
मैख़ाने में जरा कभी आकर तो देखिये
एक बार ज़ाम लब से लगाकर तो देखिये।
दुनिया को तुमने अपना बनाया तो है मगर
हमको भी कभी अपना बनाकर तो देखिये।
तुम हाले दिल पे मेरे हंसोगे न फिर कभी
पहले किसी से दिल को लगाकर तो देखिये।
जिसकी तुम्हे तलाश है मिल जायेगा तुम्हे
चाहत में उसकी खुद को मिटाकर तो देखिये।
फिर होश में न आओगे दावा है ये मेरा
उनकी नज़र से नज़र मिलाकर तो देखिये।

हर अदा में कमाल था कोई ---दीपा चौहान --सन्न्वर अली----
हर अदा में कमाल था कोई
आप अपनी मिसाल था कोई।
उसके आशिक थे मिस्ले-परवाना
हुस्न से मालामाल था कोई।
उससे छुटकारा मिल गया हमको
एक जाने बवाल था कोई।
वो मिला है न मिल सकेगा कभी
एक दिल में ख्याल था कोई।
बेचकर खून रोटियाँ लाया
भूख से यूँ निढाल था कोई।
भीगी आँखों से देखना उसका
आंसुओं में सवाल था कोई।

झुकी तो हया हो गई -----गायक-----सरफराज साबरी---
झुकी तो ह्या हो गई
उठी तो दुआ हो गई।
बढ़ी इतनी दीवानगी
मुहब्बत सजा हो गई।
तुम्हारे बिना जिंदगी
बड़ी बेमज़ा हो गई।
अजाब मुस्कराहट तेरी
सरापा कज़ा हो गई।
हुई तुमसे क्या दोस्ती
ये दुनिया खफा हो गई।

पैगाम मेरा लेकर जो बादे सबा गई -----गायिका ----दीपा चौहान
पैगाम मेरा लेकर जो बादे सबा गई
सुनते हैं नमी आँख में उनके भी आ गई।
मैं आईने के सामने पहुँची जिस घडी
मेरी बुराई साफ़ नज़र मुझको आ गई।
एक मैकदा सा बंद था उसकी निगाह में
मदहोश कर गई मुझे बेखुद बना गई।

Saturday, February 4, 2012

अदाकार तो बहुत हैं, फ़नकार नहीं है
अब किसी के सर पर दस्तार नहीं है।
साकी तेरे मैक़दे में मय बहुत है मगर
खुशबू बिखेर दे ,वो कद्रे-यार नहीं है।
हमदर्द बहुत मिलते हैं हर मोड़ पे खड़े
दिल में किसी के भी मगर प्यार नहीं है।
प्यार में, कसमें हों, वादे हों या हो वफ़ा
कुछ भी तो यहाँ सिलसिलेवार नहीं है।
हर कोई अपनी ख़ुदी में मस्त है बहुत
किसी को किसी की भी दरकार नहीं है।