Wednesday, August 31, 2011

आज खुशियाँ मनाने का दिन है
गले से लगने लगाने का दिन है।
ईद का त्यौहार मुबारक हो सबको
आज खुदा को पाने का दिन है।
हर एक की दुआ हो जाये कबूल
आज मुहब्बतें निभाने का दिन है।
ज़र्रा ज़र्रा गुलज़ार है आज यहाँ
आज सिवइयाँ खाने का दिन है।



Friday, August 26, 2011

पहले तो वो पीछा नहीं छोड़ते
बाद में फिर कहीं का नहीं छोड़ते।
उन्हें अखबार पढना न आया मगर
हाले दुनिया सुनाना नहीं छोड़ते।
मजबूर हैं आदत से अपनी बहुत
कभी बातें बनाना नहीं छोड़ते।
शोहरत का नशा है इतना उन्हें
वो मसीहा कहलाना नहीं छोड़ते।
किसी मोड़ पर मिल जाएँ अगर
फिर रस्ते बताना नहीं छोड़ते।


Thursday, August 25, 2011

खुशबु का कौन तलबगार नहीं होता
खुशबु का मगर घर बार नहीं होता।
हवा किसी को भी कब्जा नहीं देती
हवा का कोई कर्ज़दार नहीं होता।
खींचातानी तो सदा चलती रहती है
उसूलों के बिनाकभी प्यार नहीं होता।
हिफाज़त नहीं कर सके प्यार की जो
चाहत का वो भी हक़दार नहीं होता।

बेशक पानी समन्दर का खारा होता है
मगर आंसूओं की धार नहीं होता।

रोशन रखता है तमाम शहर को जो
चिराग़ वो चिराग़े-मज़ार नहीं होता।
कितनी खराब हो जाये तबियत चाहे
तिल तिल मौत का इंतज़ार नहीं होता।
जख्म न लिया हो जिसने जिगर पर
शख्श वो कभी भी दिलदार नहीं होता।
छत की मुंडेर पर बैठा हुआ परिंदा
उड़ने को कभी भी लाचार नहीं होता।












Friday, August 19, 2011

अब तोहम हद से गुज़र के देखेंगे
नया कुछ भी हम कर के देखेंगे।
भ्रष्टाचार खत्म करने को सदा ही
हम सब अन्ना बन कर के देखेंगे।

हमें रोके ताब किस में है इतना
हम इतिहास बदल कर के देखेंगे।
मानवता से इस दानवता का
पर्दा अब तो हटा कर के देखेंगे।
अपना अपना सुधार कर के हम
नित नई जोत जगाकर के देखेंगे।

लड़ाई तो अभी अभी शुरू हुई है
जीत भी हम मना कर के देखेंगे।
अमर तिरंगे को आसमा में ऊँचा
नए ढंग से लहरा कर के देखेंगे।





Monday, August 15, 2011

पहरों फूलों की निगहदारी नहीं होती
नसीब की मेहरबानी हर घडी नहीं होती।
जरूरत तो पूरी हो जाती है फकीर की
ख्वाहिश बादशाह की पूरी नहीं होती।
महल ख्वाबों का कब तलक सजाओगे
सन्नाटों में कोई बस्ती बसी नहीं होती।
खुद्दारी तेरी ठीक है तो मेरी भी ठीक है
जिंदगी बेदाम किसी की भी नहीं होती।
पतझड़ की रुत आती है तो कह जाती है

सूखे जर्द पत्तों में जिंदगानी नहीं होती
अपनी ही कुछ मजबूरियाँ होंगी वक़्त की
वरना बेताल्लुकी कभी बढ़ी नहीं होती।
नई तरह की कैफियत होती है दिल में
महफ़िल अदब से जब सजी नहीं होती।

जिंदगी बिन बात के ही ज़लील कर देती
अगर सलीके से इसे हमने जी नहीं होती।

निगह्दारी- देखभाल





Saturday, August 13, 2011

पीढियां बदली आज़ादी बदली बदला पन्द्रह अगस्त
केवल तारीख बन कर ही है आता पन्द्रह अगस्त।
भ्रष्टाचार में पल रहा और आतंक वाद से डर रहा
कितना सहमा सहमा सा है रहता पन्द्रह अगस्त।
समस्याएं अनगिनत खड़ी हैं हाथ फैलाये सर पर
महंगाई और भुखमरी से लड़ रहा पन्द्रह अगस्त।
कितने वीर शहीद हुए थे तब हमने पाया था झंडा
नई पीढी नहीं जाने है संतालिस का पन्द्रह अगस्त।
सर पे कफ़न बाँध कर के चूमा था फांसी का फंदा
उस संघर्ष की याद नहीं दिलाता पन्द्रह अगस्त।
देश भक्ति के गाने गाकर और झंडा फहराकर ही
है कुछ ही पलों में खत्म हो जाता पन्द्रह अगस्त।
खुद को बदल कर के नमन शहीदों को कर चलो
मनाये बापू सुभाष के सपनों का पन्द्रह अगस्त।





Monday, August 1, 2011

पत्थर पत्थर है कहाँ पिघलता है
मोम नर्म दिल है तब ही जलता है।
बादल के पास अपना कुछ भी नहीं
समंदर का गम लेकर बरसता है।
जरा सी बात पर खफ़ा जो होता है
हर बात पर वही तो बिगड़ता है।
पुरानी यादों से आग निकलती है
दरिया आग का बहता लगता है।
जितने दिन भी जी लेता है आदमी
कर्ज़ साँसों का ही अदा करता है।
गुबार जो इक्कठा होता है दिल में
ग़ज़ल बनकर लब से निकलता है।