हाले दिल बयां करना हमारी आदत है
पौ में फट जाना रात की आदत है।
परेशानियाँ मेरे लिए कोई नई बात नहीं
परेशानियों में घिरे रहना मेरी आदत है।
बड़े जतनसे उसे बोलना सिखाया था
मेरी हर बात पर बोलना उसकी आदत है।
वक़्त से भी दोस्ती निभाली मैंने अब
जान गया मिटाकर बनाना उसकी आदत है।
ख़ुशी मुझ से बिछड़कर चैन कैसे पा गई
तकदीर को कोसना इंसान की आदत है।
हँसना रोना कौन किसको सीखा पाया है
यह तो फ़ज़ा की रंग बदलती आदत है ।
एक नन्हा सा दिया जलता है तमाम रात
अँधेरे से लड़ते रहना उसकी आदत है ।
Tuesday, June 29, 2010
Monday, June 28, 2010
माँ और सास
एक माँ को अपने बेटे
बहुत अच्छे लगते हैं,
चाहे कितने ही नाकारा हों
आवारा हों ,निकम्में हों
बहुत अच्छे लगते हैं।
एक सास को दूसरों की बहुएँ
बहुत अच्छी लगती हैं,
चाहे जाहिल हों ,फूहड़ हों ।
काम करने का सलीका भी
उन्हें न आता हो पर
बहुत अच्छी लगती हैं।
अपनी बहु चाहे
कितनी सुंदर , सुघढ़
सलीकेदार हो ,
म्र्दुव्यव्हार हो ,
उतनी अच्छी नहीं लगती जितनी
दूसरों की बहुएं अच्छी लगती हैं।
बहुत अच्छे लगते हैं,
चाहे कितने ही नाकारा हों
आवारा हों ,निकम्में हों
बहुत अच्छे लगते हैं।
एक सास को दूसरों की बहुएँ
बहुत अच्छी लगती हैं,
चाहे जाहिल हों ,फूहड़ हों ।
काम करने का सलीका भी
उन्हें न आता हो पर
बहुत अच्छी लगती हैं।
अपनी बहु चाहे
कितनी सुंदर , सुघढ़
सलीकेदार हो ,
म्र्दुव्यव्हार हो ,
उतनी अच्छी नहीं लगती जितनी
दूसरों की बहुएं अच्छी लगती हैं।
Sunday, June 27, 2010
कभी सूरज के गोले सा तपता रहा.
कभी सूरज के गोले सा तपता रहा
कभी चाँद बनकर मचलता रहा ।
बादल बनकर उड़ जाता कभी
शबनम बनकर पिघलता रहा ।
जिसने पुकारा संग हो लिया
पाँव में एक घाव था रिसता रहा ।
मज़बूरी उसकी थी तकदीर मेरी
ख्वाब एक यतीम सा पलता रहा ।
मैं जहां था वहीँ का वहीँ रह गया
ले फन शायरी सबसे मिलता रहा।
कभी चाँद बनकर मचलता रहा ।
बादल बनकर उड़ जाता कभी
शबनम बनकर पिघलता रहा ।
जिसने पुकारा संग हो लिया
पाँव में एक घाव था रिसता रहा ।
मज़बूरी उसकी थी तकदीर मेरी
ख्वाब एक यतीम सा पलता रहा ।
मैं जहां था वहीँ का वहीँ रह गया
ले फन शायरी सबसे मिलता रहा।
Saturday, June 26, 2010
बेमिसाल होता है
हुस्न कभी सर-ता-पा कमाल होता है
सुर्ख होठों पर तिल बेमिसाल होता है ।
असीम सुन्दरता की मूरत है तू , तुझे
उर्वशी कहूं या वीनस सवाल होता है ।
लज्जत है कशिश है नखरें हैं बहुत
हुस्न खुद पर ही निहाल होता है ।
मौज में आया हुआ समुंदर है तू
तुझे देखकर आइना बेहाल होता है ।
दिल उलझ कर रह जाते हैं जिसमे
हुस्न ऐसा खुबसूरत जाल होता है ।
तारीफ में लफ्ज़ भी ढूंढें नहीं मिलते
ग़ज़ल से अच्छा तेरा गजाल होता है।
सुर्ख होठों पर तिल बेमिसाल होता है ।
असीम सुन्दरता की मूरत है तू , तुझे
उर्वशी कहूं या वीनस सवाल होता है ।
लज्जत है कशिश है नखरें हैं बहुत
हुस्न खुद पर ही निहाल होता है ।
मौज में आया हुआ समुंदर है तू
तुझे देखकर आइना बेहाल होता है ।
दिल उलझ कर रह जाते हैं जिसमे
हुस्न ऐसा खुबसूरत जाल होता है ।
तारीफ में लफ्ज़ भी ढूंढें नहीं मिलते
ग़ज़ल से अच्छा तेरा गजाल होता है।
Friday, June 25, 2010
पूछती है
खिजां से बहार का पता पूछती है
सन्नाटों से हंगामें का पता पूछती है।
अक्ल की नादानी का ज़िक्र क्या करें
एक सूफी से मैखाने का पता पूछती है
चेहरा खिलखिलाया रहता था जो
हंसी उस चेहरे का पता पूछती है ।
सिर झुकाने से कृष्ण नहीं मिलता
राधा उसके रहने का पता पूछती है।
फूल एक रक्खा था किताब में हमने
मोहब्बत पन्ने का पता पूछती है।
श्रृंगार का सामान हाथ में लिए
खूबसूरती आईने का पता पूछती है।
जो इश्क में दुनिया भुलाए बैठे हैं
चिट्ठी घर का उनके पता पूछती है।
जिनकी दहलीज से सूरज उगता है
तकदीर उनसे जगने का पता पूछती है।
सन्नाटों से हंगामें का पता पूछती है।
अक्ल की नादानी का ज़िक्र क्या करें
एक सूफी से मैखाने का पता पूछती है
चेहरा खिलखिलाया रहता था जो
हंसी उस चेहरे का पता पूछती है ।
सिर झुकाने से कृष्ण नहीं मिलता
राधा उसके रहने का पता पूछती है।
फूल एक रक्खा था किताब में हमने
मोहब्बत पन्ने का पता पूछती है।
श्रृंगार का सामान हाथ में लिए
खूबसूरती आईने का पता पूछती है।
जो इश्क में दुनिया भुलाए बैठे हैं
चिट्ठी घर का उनके पता पूछती है।
जिनकी दहलीज से सूरज उगता है
तकदीर उनसे जगने का पता पूछती है।
Monday, June 21, 2010
पेट लिखने से नहीं भरता
वह कभी बाहर नहीं निकलता
कोई काम मन से नहीं करता ।
मेहनत तो करनी पड़ती है
घर वायदों से नहीं चलता ।
बातें करने से क्या होगा
समाज इनसे नहीं बदलता ।
वक़्त बहुत बलवान होता है
क्यों इंसान इससे नहीं डरता।
भूखे मरते हैं शायर कवि
पेट लिखने से नहीं भरता ।
कोई काम मन से नहीं करता ।
मेहनत तो करनी पड़ती है
घर वायदों से नहीं चलता ।
बातें करने से क्या होगा
समाज इनसे नहीं बदलता ।
वक़्त बहुत बलवान होता है
क्यों इंसान इससे नहीं डरता।
भूखे मरते हैं शायर कवि
पेट लिखने से नहीं भरता ।
आज की रात बहुत भारी है
आज की रात बहुत भारी है
किसी के जाने की तय्यारी है।
गम में डूबा है हर कोई
दिल सबका बहुत भारी है।
है इलाज़ नहीं इसका अब
इसको कैसी बीमारी है ।
बेबस बना है हर कोई
छाई कैसी लाचारी है ।
कष्ट है बहुत इसको
हुआ दम निकलना भारी है।
खुदा निजात देदे इसे
अब बनी सांस लाचारी है।
हे रब तेरी माया यह
बिलकुल अजब न्यारी है।
बनी सांस लाचारी है ।
किसी के जाने की तय्यारी है।
गम में डूबा है हर कोई
दिल सबका बहुत भारी है।
है इलाज़ नहीं इसका अब
इसको कैसी बीमारी है ।
बेबस बना है हर कोई
छाई कैसी लाचारी है ।
कष्ट है बहुत इसको
हुआ दम निकलना भारी है।
खुदा निजात देदे इसे
अब बनी सांस लाचारी है।
हे रब तेरी माया यह
बिलकुल अजब न्यारी है।
बनी सांस लाचारी है ।
कभी उलझी कभी सुलझी
कभी उलझी कभी सुलझी
इसी तरह से जिंदगी गुजरी।
आँगन में गम बरसा कभी
आंचल में ख़ुशी बिखरी ।
कभी पलकों से शाम
उदास रोती हुई बिछड़ी।
सुबह की लाली में कभी
उम्मीद मिलन की चमकी।
दोस्तों ने गम दिया कभी
दुश्मनी में खुशबु भी महकी।
आइना घमंड का चटखा
फिर कमी किसी की अखरी।
बस इतना जरूर पाया हमने
करके सेवा बड़ी उनकी
बजुर्गों कि दुआओं से ही
तो है यह जिंदगी महकी ।
इसी तरह से जिंदगी गुजरी।
आँगन में गम बरसा कभी
आंचल में ख़ुशी बिखरी ।
कभी पलकों से शाम
उदास रोती हुई बिछड़ी।
सुबह की लाली में कभी
उम्मीद मिलन की चमकी।
दोस्तों ने गम दिया कभी
दुश्मनी में खुशबु भी महकी।
आइना घमंड का चटखा
फिर कमी किसी की अखरी।
बस इतना जरूर पाया हमने
करके सेवा बड़ी उनकी
बजुर्गों कि दुआओं से ही
तो है यह जिंदगी महकी ।
Saturday, June 19, 2010
तुम्हारे जाने पर
तुम्हारे जाने पर हर आँख शबनमी होगी
हर समय महसूस आपकी कमी होगी ।
कभी न बुझेगा तुम्हारी यादों का चिराग
कि उसी से हमारे दिल में रौशनी होगी ।
हर समय महसूस आपकी कमी होगी ।
कभी न बुझेगा तुम्हारी यादों का चिराग
कि उसी से हमारे दिल में रौशनी होगी ।
कमाल होता है
हर वक़्त कुदरत का कमाल होता है ।
सूरज सुबह निकलता है लाल होता है ।
दिन भर कड़ी मेहनत करने के बाद
ढलता है तब भी वह लाल होता है ।
मिटटी में मिल इंसां मिटटी से बनता है
दिल उसकी कारीगरी पर निहाल होता है।
एक सांचे में ढलके फितरत है अलग क्यों
जेहन में रह रहकर यह सवाल होता है।
जो उसकी नेमतों की कद्र नहीं करता
अमीर होकर भी शख्श वह कंगाल होता है।
सूरज सुबह निकलता है लाल होता है ।
दिन भर कड़ी मेहनत करने के बाद
ढलता है तब भी वह लाल होता है ।
मिटटी में मिल इंसां मिटटी से बनता है
दिल उसकी कारीगरी पर निहाल होता है।
एक सांचे में ढलके फितरत है अलग क्यों
जेहन में रह रहकर यह सवाल होता है।
जो उसकी नेमतों की कद्र नहीं करता
अमीर होकर भी शख्श वह कंगाल होता है।
Wednesday, June 16, 2010
दवा बन जाता है
दर्द का हद से गुजरजाना
कहते हैं दवा बन जाता है।
सर्द हवा का झोंका कभी
तपता सहरा बन जाता है।
जब मुंह से बात न होती हो
जुर्म देखना बन जाता है ।
श्रद्धा से देख लिया अगर
पत्थर खुदा बन जाता है।
चाहत जब सुकूँ छीन लेती है
जीना सजा बन जाता है।
घर की दीवारों पर उतरा दुःख
सांसों का हिस्सा बन जाता है।
माँ के पैरों तले जन्नत होती है
दिल बाप का रस्ता बन जाता है।
उसकी नेमतों की क़दर नहीं की टो
करम कहर सा बन जाता है ।
कहते हैं दवा बन जाता है।
सर्द हवा का झोंका कभी
तपता सहरा बन जाता है।
जब मुंह से बात न होती हो
जुर्म देखना बन जाता है ।
श्रद्धा से देख लिया अगर
पत्थर खुदा बन जाता है।
चाहत जब सुकूँ छीन लेती है
जीना सजा बन जाता है।
घर की दीवारों पर उतरा दुःख
सांसों का हिस्सा बन जाता है।
माँ के पैरों तले जन्नत होती है
दिल बाप का रस्ता बन जाता है।
उसकी नेमतों की क़दर नहीं की टो
करम कहर सा बन जाता है ।
तलवार से नाख़ून नहीं कटते
तलवार से नाख़ून नहीं कटते
तपते सहरा में बादल नहीं बरसते ।
नासूर बन जाते हैं धीरे धीरे
जख्म सुईं से कभी नहीं सिलते ।
चार तिनकों की छत के नीचे
तेज बारिश धूप से नहीं बचते ।
गम में टूटकर बिखर जाते हैं
दिल वह कभी नहीं सम्भलते ।
जिनके हौसले बुलंद होते हैं
उनके क़दम पीछे नहीं हटते ।
जो अपना नसीब खुद लिखते हैं
वह किसी शख्श से नहीं डरते।
नेकियाँ करते रहने से सदा
अच्छे दिन कभी नहीं बदलते ।
तपते सहरा में बादल नहीं बरसते ।
नासूर बन जाते हैं धीरे धीरे
जख्म सुईं से कभी नहीं सिलते ।
चार तिनकों की छत के नीचे
तेज बारिश धूप से नहीं बचते ।
गम में टूटकर बिखर जाते हैं
दिल वह कभी नहीं सम्भलते ।
जिनके हौसले बुलंद होते हैं
उनके क़दम पीछे नहीं हटते ।
जो अपना नसीब खुद लिखते हैं
वह किसी शख्श से नहीं डरते।
नेकियाँ करते रहने से सदा
अच्छे दिन कभी नहीं बदलते ।
प्रश्न नया हो गया
जो संग तराशा खुदा हो गया
दर्द खुद ही मेरी दवा हो गया ।
उदासी जाने कहाँ से घिर आती है
यह सोचते एक अरसा हो गया.
बज्म में तो खुशियाँ बरसी थी
वक़्त जल्दी ही विदा हो गया।
सुख के पल थोड़े से ही थे वह
जख्म फिर से हरा हो गया।
क्यों हमें डराती रहती हैं खुशियाँ
हर बार यह प्रश्न नया हो गया।
दर्द खुद ही मेरी दवा हो गया ।
उदासी जाने कहाँ से घिर आती है
यह सोचते एक अरसा हो गया.
बज्म में तो खुशियाँ बरसी थी
वक़्त जल्दी ही विदा हो गया।
सुख के पल थोड़े से ही थे वह
जख्म फिर से हरा हो गया।
क्यों हमें डराती रहती हैं खुशियाँ
हर बार यह प्रश्न नया हो गया।
Saturday, June 12, 2010
कौन आसमान छुआ करता है
जमीन से उठकर कौन आसमान छुआ करता है
वक़्त हर वक़्त कहाँ मेहरबान हुआ करता है ।
किसी की आँख से पोंछ देता है जो आंसू
आदमी उसके लिए भगवान हुआ करता है ।
हो सके तो खुद की जेब पर भरोसा रखना
दूसरों का रहमोकरम अहसान हुआ करता है
जो अपने क़द से भी लम्बा होता चला गया
किसी के गले लगने से परेशान हुआ करता है।
वक़्त हर वक़्त कहाँ मेहरबान हुआ करता है ।
किसी की आँख से पोंछ देता है जो आंसू
आदमी उसके लिए भगवान हुआ करता है ।
हो सके तो खुद की जेब पर भरोसा रखना
दूसरों का रहमोकरम अहसान हुआ करता है
जो अपने क़द से भी लम्बा होता चला गया
किसी के गले लगने से परेशान हुआ करता है।
जनाब के लिए
कुछ शक्लें बनी हैं बस ख्वाब के लिए
जैसे कहानियाँ बनी हैं किताब के लिए।
बैचैनी भाग रही है इंसान के पीछे
मसीहा नहीं है कोई दिले बेताब के लिए।
पसीना बहाकर खेत में गलाई थी हड्डियाँ
अब लड़ रहा है सूखे से हिसाब के लिए ।
तलाश रहा है झुर्रियों में क्या पता नहीं
उम्र कम पड़ गई है हर जबाब के लिए।
किसी को रोते देखकर हंसना नहीं अच्छा
न जाने कौन सा आंसूँ बना है तेजाब के लिए।
मिटटी खाकर बच्चा जीएगा कब तलक
पेट भरने को रोटी चाहिए जनाब के लिए ।
जैसे कहानियाँ बनी हैं किताब के लिए।
बैचैनी भाग रही है इंसान के पीछे
मसीहा नहीं है कोई दिले बेताब के लिए।
पसीना बहाकर खेत में गलाई थी हड्डियाँ
अब लड़ रहा है सूखे से हिसाब के लिए ।
तलाश रहा है झुर्रियों में क्या पता नहीं
उम्र कम पड़ गई है हर जबाब के लिए।
किसी को रोते देखकर हंसना नहीं अच्छा
न जाने कौन सा आंसूँ बना है तेजाब के लिए।
मिटटी खाकर बच्चा जीएगा कब तलक
पेट भरने को रोटी चाहिए जनाब के लिए ।
Friday, June 11, 2010
बदलते रहते हैं
रेत पर नक्शे क़दम बदलते रहते हैं
नाम रोज़ दिन के बदलते रहते हैं ।
कैसे होगी मोहब्बत की मंजिल तय
वो चलते चलते रस्ते बदलते रहते हैं।
बडे ही मतलबी होते हैं कुछ लोग
हर वक़्त पैंतरे बदलते रहते हैं ।
कहने को यूँ तो हमारे हैं सब
मौसम की तरह से बदलते रहते हैं ।
किसी का होना किसी को खोना पड़ता है
ऊसूल जिन्दगी के बदलते रहते हैं ।
नाम रोज़ दिन के बदलते रहते हैं ।
कैसे होगी मोहब्बत की मंजिल तय
वो चलते चलते रस्ते बदलते रहते हैं।
बडे ही मतलबी होते हैं कुछ लोग
हर वक़्त पैंतरे बदलते रहते हैं ।
कहने को यूँ तो हमारे हैं सब
मौसम की तरह से बदलते रहते हैं ।
किसी का होना किसी को खोना पड़ता है
ऊसूल जिन्दगी के बदलते रहते हैं ।
निशाँ नहीं मिलते
दश्त-ओ-सहरा में गुलिश्तां नहीं मिलते
रहने को कहीं भी मकां नहीं मिलते ।
चलती हुई लू के थपेड़े तो मिलते हैं
मंजिल तक पहुंचने के निशाँ नहीं मिलते।
दूर तक बस्ती कोई आबादी नहीं मिलती
रात में सिर पर आसमां नहीं मिलते ।
गुज़र जाती है शब् उदास करके मुझे
तन्हाई में एहसासे-जियां नहीं मिलते ।
रह रह के सिमटते हैं घेरे मेरी बाँहों के
फरेब जिंदगी में कहाँ नहीं मिलते ।
अपने वजूद में सिमटा रह जाता हूँ मैं
हम जहां हैं तुम कभी वहाँ नहीं मिलते ।
रहने को कहीं भी मकां नहीं मिलते ।
चलती हुई लू के थपेड़े तो मिलते हैं
मंजिल तक पहुंचने के निशाँ नहीं मिलते।
दूर तक बस्ती कोई आबादी नहीं मिलती
रात में सिर पर आसमां नहीं मिलते ।
गुज़र जाती है शब् उदास करके मुझे
तन्हाई में एहसासे-जियां नहीं मिलते ।
रह रह के सिमटते हैं घेरे मेरी बाँहों के
फरेब जिंदगी में कहाँ नहीं मिलते ।
अपने वजूद में सिमटा रह जाता हूँ मैं
हम जहां हैं तुम कभी वहाँ नहीं मिलते ।
Tuesday, June 1, 2010
मेरे हिस्से में माँ आई
वो बड़ा था उसके हिस्से में कोठियां आई
जो मंझला था उसके हिस्से में दुकाँ आई।
मै छोटा था पढ़ता खेलता कूदता था
मेरे हिस्से में मुझे पालती मेरी माँ आई।
बहुत खराब है माहोल इस दौर का
बिगड़ते वक़्त में न दौलत काम यहाँ आई।
बड़े से बड़ा हादसा होते होते टल गया
मुझे बचाने में सदा काम दुआएं माँ आई।
जो मंझला था उसके हिस्से में दुकाँ आई।
मै छोटा था पढ़ता खेलता कूदता था
मेरे हिस्से में मुझे पालती मेरी माँ आई।
बहुत खराब है माहोल इस दौर का
बिगड़ते वक़्त में न दौलत काम यहाँ आई।
बड़े से बड़ा हादसा होते होते टल गया
मुझे बचाने में सदा काम दुआएं माँ आई।
आइना पोंछते रहे
ता-उम्र खिलिन्दियाँ करते रहे
चेहरे की धूल न साफ़ की
आइना पोंछते रहे ,
उभरती शिकनों का अहसास
जब हुआ
खोया बचपन आईने में
ढूंढते रहे।
चेहरे की धूल न साफ़ की
आइना पोंछते रहे ,
उभरती शिकनों का अहसास
जब हुआ
खोया बचपन आईने में
ढूंढते रहे।
शहर का हर चलन नया देखा
हमने शहर का हर चलन नया देखा
गमले में मन्दिर के पीपल खड़ा देखा।
निकल पड़ते हैं सुबह जल्दी ही सब
घर में सारा दिन ताला पड़ा देखा ।
अंगडाइयां लेकर मचलता समन्दर
अज़ब तरह के तमाशे करता देखा।
आसमान छूने को बेताब हुआ वह
सदा रेत की गोद में सिमटा देखा।
किसी को कोई पहचानेगा कैसे यहाँ
इन्सान खुद से ही बेखबर बना देखा।
ईमान की भी कीमत नही देखी कोई
दुकान की कीमत पर बिका देखा।
अपनी शक्ल में नही मिलता कोई भी
नकाब तरह तरह का चढ़ा देखा ।
गमले में मन्दिर के पीपल खड़ा देखा।
निकल पड़ते हैं सुबह जल्दी ही सब
घर में सारा दिन ताला पड़ा देखा ।
अंगडाइयां लेकर मचलता समन्दर
अज़ब तरह के तमाशे करता देखा।
आसमान छूने को बेताब हुआ वह
सदा रेत की गोद में सिमटा देखा।
किसी को कोई पहचानेगा कैसे यहाँ
इन्सान खुद से ही बेखबर बना देखा।
ईमान की भी कीमत नही देखी कोई
दुकान की कीमत पर बिका देखा।
अपनी शक्ल में नही मिलता कोई भी
नकाब तरह तरह का चढ़ा देखा ।
दुकान सजी हुई है
बेईमानी की दुकान सजी हुई है
हर और नुमाइश भरी हुई है।
खरीदारी में शरीक होने को
इमानदारी बहुत डरी हुई है।
खून बेचकर रोटी खरीदी है
आँख ख़ुशी से भरी हुई है।
कुछ पल की ख़ुशी के बाद
आँख फिर रोने को भरी हुई है।
गम दरदर भटक रहा है
ख़ुशी सहमी सी डरी हुई है।
ख्वाब दिखाई देंगे कैसे
आँख आंसुओं से भरी हुई है।
हर और जलसे हो रहे हैं
जनता आतंक से डरी हुई है।
खौफ में है जिंदगी हर पल
फिर भी कहीं न ठहरी हुई है।
हर और नुमाइश भरी हुई है।
खरीदारी में शरीक होने को
इमानदारी बहुत डरी हुई है।
खून बेचकर रोटी खरीदी है
आँख ख़ुशी से भरी हुई है।
कुछ पल की ख़ुशी के बाद
आँख फिर रोने को भरी हुई है।
गम दरदर भटक रहा है
ख़ुशी सहमी सी डरी हुई है।
ख्वाब दिखाई देंगे कैसे
आँख आंसुओं से भरी हुई है।
हर और जलसे हो रहे हैं
जनता आतंक से डरी हुई है।
खौफ में है जिंदगी हर पल
फिर भी कहीं न ठहरी हुई है।
ग़ज़ल
ग़ज़ल उर्दू में कही हिंदी में लिखी जाती है
यह बड़े चाव से हर दिल की हुई जाती है।
मिसरों को बहर के पहलू में सज़ा करके
मुरीदयह काफिया रदीफ़ की हुई जाती है।
नाजों अंदाजों की कभी कसीदों की हुई
कभी बूढी नहीं हमेशा जवान हुई जाती है।
मिसाल कहीं ढूंढें से नहीं मिलती इसकी
खूबसूरती में ग़ज़ल गजाला हुई जाती है।
उलझे बालों वाले शायरों की दीवानी थी
अपने अंदाज़ में अब सबकी हुई जाती है।
शराब शबाब आशिकी की हुआ करती थी
अब हर तरह के अशआर की हुई जाती है।
कम से कम शब्दों में बड़ी बात कह जाती है
ग़ज़ल अमीर गरीब सब की हुई जाती है ।
यह बड़े चाव से हर दिल की हुई जाती है।
मिसरों को बहर के पहलू में सज़ा करके
मुरीदयह काफिया रदीफ़ की हुई जाती है।
नाजों अंदाजों की कभी कसीदों की हुई
कभी बूढी नहीं हमेशा जवान हुई जाती है।
मिसाल कहीं ढूंढें से नहीं मिलती इसकी
खूबसूरती में ग़ज़ल गजाला हुई जाती है।
उलझे बालों वाले शायरों की दीवानी थी
अपने अंदाज़ में अब सबकी हुई जाती है।
शराब शबाब आशिकी की हुआ करती थी
अब हर तरह के अशआर की हुई जाती है।
कम से कम शब्दों में बड़ी बात कह जाती है
ग़ज़ल अमीर गरीब सब की हुई जाती है ।
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