Monday, February 2, 2015

खुशबू बनकर  बिखरना चाहता हूँ
मेरी सादगी देख मैं क्या चाहता हूँ
लुभाता है चाँद जो मुझ को  दूर से
दिल में उसके  धड़कना चाहता हूँ।
ना नहीं कहना आया कभी मुझको
मैं हर दिल में बना रहना चाहता हूँ।
बहुत भाती हैं  यह बारिशें मुझ को
उन की बाहों  में भीगना चाहता हूँ।
मेरी बात ध्यान से न सुनी उन्होंने
उन्होंने सोचा मैं ख़ूबहा चाहता हूँ।
सच तो इतना सा ही भर है कि बस
मैं तो अब हद से गुज़रना चाहता हूँ.
    खूबहा   - पारिश्रमिक
 

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