Thursday, February 12, 2015

चरचे तमाम शहर में  बहार के हैं
सुलगती हुई रुत में  फ़ुहार के हैं।
अपनी जीत पर  गुमान मत कर
तुझसे ज़्यादा चर्चे मेरी हार के हैं।
पता है कि हर फ़न में माहिर है तू
इक़रार में भी मंज़र इन्कार के हैं।
तूने जो दिखाए वो सब ने ही  देखे
मगर वो सपने  सारे  उधार के हैं।
मेरे अन्दर खुशियां तलाशने वाले 
मारे हुए हम भी तेरे ही वार के हैं।
आज भी मुझपे यक़ीन है सब को
रिश्ते तो  सारे  ही  ऐतबार  के हैं।
तलल्लुक़  हमसे न तोड़ पाओगे
हम उजाड़ में मौसम बहार के हैं।
सूरज जबसे निकला मैं सोच में हूं
क्या हसीं नज़ारे मेरे दयार के हैं। 
   



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