Friday, November 29, 2013

जवाब जिसका हो,लाज़वाब नहीं होता
ख्वाब जो सच्चा हो, ख्वाब नहीं होता।
उस की हर किरन ही बड़ी नाज़ुक सी है
माहताब कभी भी आफ़ताब नहीं होता।
ज़मीन छूने लगती है ,आसमान  जब
तो फ़िर कीमतों का हिसाब नहीं होता।
उस के नसीब में है, मुफ़लिसी का दर्द
ग़रीब ग़रीब होता है ,ज़नाब नहीं होता।
हर एक बात की इल्तिज़ा करता है वो
उस की शराफ़तों का ज़वाब नहीं होता।
भाप बन कर उड़ गया, सारा ही पानी
इन  आँखों में  अब सैलाब नहीं होता।
उसकी बेरुखी पर यह सवाल उठता है
सूखी नदियों में क्यों आब नहीं होता।
तौबा कर ली है जब से पीने की हमने
अब पीने को  दिल, बेताब नहीं होता।




 

Sunday, November 17, 2013

उम्र प्यार की अब कम हो गई 
यह सोचकर आँख नम हो गई।
चाँद  गोद में कभी आया  नहीं
ज़िन्दगी अँधेरे में गुम हो गई।
रिश्तों को भुनाते भुनाते ही तो
दिलों की चमक ख़त्म हो गई।
लगावट दिलों में अब रही नहीं
हँसी भी होठों पर हिम हो गई।
उम्र भर धूप में रहते रहते अब
छाँव में ये आंखें बेदम हो गई।
सहरा में भटक लिए इतना हम 
तिश्नगी  होठों की कम हो गई।
मेरी साख़ पर अंगुली क्या उठी
ज़िन्दगी ही अब सितम हो गई। 
 

Saturday, November 16, 2013

जिस को भी मैंने  है हवा से बचाया
उस चिराग़ ने ही  घर मेरा जलाया।
हमसफ़र बनकर साथ चला जो भी
तन्हाई का उसने ही फ़ायदा उठाया।
सूखे लब हैं ,यह भीगी भीगी  आँखें
बहार ने भी कैसा यह गुल खिलाया।
क़द से बाहर तो निकल आया था मै
ख़ुद से ही बाहर  न मैं निकल पाया।
ख़ुदा को खोजने निकला था, मैं तो
मुझ को  ढूँढता फिरा मेरा ही साया।
सूने दालान यह खिड़कियां वीरान 
घर का मेरे, यह क्या हाल बनाया।
हज़ार खिड़कियां थी, दिल में  मेरे
किसी को  भी मैं, नहीं खोल पाया।
तीर की  माफ़िक़, चुभी अंगुली वो
किसी ने जब मेरा ज़ख्म सहलाया।
मेरे ज़ख्मों की महक़ कहती है यह
तू भी तो मुझ को , नहीं भूल पाया।      

Tuesday, November 5, 2013

जलते सवालों के सुलगते ज़वाब कौन देगा
जो रात बीत गयी उस के ख्बाब कौन देगा।
इक आग होनी चाहिए, रौशनी के लिए भी
इस अँधेरे में उजालों का हिसाब कौन देगा।
इतनी ज़यादा मिल गई हमें गमों की दौलत
ज़र्द हवाओं को खुशबु-ए -गुलाब कौन देगा।
उदासियाँ सी बिखरी पड़ी हैं ,चारों ही तरफ
इस मौसम को बहार का ख़िताब कौन देगा।
हमारी तमन्ना को जगाया और बुझा दिया
हमारे ज़ुनून को अब हवा बेताब कौन देगा।
आज़ की शब् चाँद की चमक बहुत फीकी है
आज़ चांदनी को हुस्ने-माहताब कौन देगा।
हवा का एक झोंका आया, सब बिखर गया
अब मुहब्बत में भरोसे का हिसाब कौन देगा।