जवाब जिसका हो,लाज़वाब नहीं होता
ख्वाब जो सच्चा हो, ख्वाब नहीं होता।
उस की हर किरन ही बड़ी नाज़ुक सी है
माहताब कभी भी आफ़ताब नहीं होता।
ज़मीन छूने लगती है ,आसमान जब
तो फ़िर कीमतों का हिसाब नहीं होता।
उस के नसीब में है, मुफ़लिसी का दर्द
ग़रीब ग़रीब होता है ,ज़नाब नहीं होता।
हर एक बात की इल्तिज़ा करता है वो
उस की शराफ़तों का ज़वाब नहीं होता।
भाप बन कर उड़ गया, सारा ही पानी
इन आँखों में अब सैलाब नहीं होता।
उसकी बेरुखी पर यह सवाल उठता है
सूखी नदियों में क्यों आब नहीं होता।
तौबा कर ली है जब से पीने की हमने
अब पीने को दिल, बेताब नहीं होता।
ख्वाब जो सच्चा हो, ख्वाब नहीं होता।
उस की हर किरन ही बड़ी नाज़ुक सी है
माहताब कभी भी आफ़ताब नहीं होता।
ज़मीन छूने लगती है ,आसमान जब
तो फ़िर कीमतों का हिसाब नहीं होता।
उस के नसीब में है, मुफ़लिसी का दर्द
ग़रीब ग़रीब होता है ,ज़नाब नहीं होता।
हर एक बात की इल्तिज़ा करता है वो
उस की शराफ़तों का ज़वाब नहीं होता।
भाप बन कर उड़ गया, सारा ही पानी
इन आँखों में अब सैलाब नहीं होता।
उसकी बेरुखी पर यह सवाल उठता है
सूखी नदियों में क्यों आब नहीं होता।
तौबा कर ली है जब से पीने की हमने
अब पीने को दिल, बेताब नहीं होता।