Tuesday, September 13, 2011

हिंदी की सम्पदा मिटती जा रही है।
हिंदी हर पल सिसकती जा रही है।
हर वर्ष हिंदी दिवस मनाकर बस
बरसी के दायरे में सिमटती जा रही है।
प्रयोग करने को भी शब्द नहीं मिलते
विपदाएं हिंदी की बढती जा रही हैं।
अंग्रेजी स्कूल में पढी नई पीढी की
हिंदी बहुत ही बिगडती जा रही है।
व्यवहार में भी हिंदी हिंदी न रही
गहन कालिमा में विचरती जा रही है।
कितनी ही कोशिशें कर के देख ली
पर दिल से हिंदी मिटती जा रही है।

1 comment:

  1. सुन्दर रचना आपकी, नए नए आयाम |
    देत बधाई प्रेम से, प्रस्तुति हो अविराम |

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