Saturday, February 6, 2010

वो भी क्या दिन थे

जब गाँव में मेरी बैलगाड़ी सबसे अगाडी की धुन छेडती थी

तो गली मोहल्ले के लडके मीलो तक मेरा पीछा नहीं छोड़ते थे

मैं उत्साह से भरा रहता था।

यह भी क्या दिन हैं

शहर की बड़ी बड़ी सड़कों पर मेरी मोटरकार

धीरे धीरे रेंगती चलती है और कोई गाडी

मेरी गाडी से टकरा न जाए

दर पीछा नहीं छोड़ता।

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