Sunday, May 17, 2015

बचपन ख़रीद सके वह अमीर न मिला
सब कुछ लुटादे वह दानवीर न  मिला।
जिसे न चाहिए सोना चांदी या मकान
ऐसा भी कोई मौला या फ़क़ीर न मिला।
अपनी ही फ़क़ीरी में मस्त रहता हो जो
फ़िर ऐसा भी कोई संत क़बीर न मिला।
इश्क़ में भी पहले सी शिद्दत नहीं रही
अब रांझा  ढूंढता अपनी हीर न मिला।
ज़ख्म  ठीक कर दे जो बिना दवाई  के
ऐसा भी कोई  मसीहा या पीर न मिला।
जाने कौन से  शहर में रहता है  वह तो
प्यादे बहुत मिले कोई वज़ीर  न मिला। 
क़िस्मत को कोसते हुए तो सब ही  मिले 
लिखता कोई अपनी ही तक़दीर न मिला। 

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