Saturday, March 28, 2015

ज़ख्मों के निशान ने परेशान कर दिया
अपनों ही के बर्ताव ने  हैरान कर दिया।
कितने  ख़ुदा  तराशे थे  हर रोज़ हमने
ईमान ने  सब को ही  हैवान कर  दिया।
सारे शहर का हुआ बस  हमारा  न हुआ
इतना  उसने हमपर एहसान कर दिया।
मुद्दत से अब कोई फूल शाख़ पर  नही
मेरा हाल भी उसने यूं बयान  कर दिया।
कहीं दिल नहीं मिलता निसार होने  को
हमने तो उम्र को ही क़ुरबान  कर दिया।
लड़ना तो मैंने चाहा था हालात से मगर
मुझ  को  उस ने दबी ज़ुबान कर दिया।
अब कहाँ रहा मुझ में उलझने  का जुनूँ
उस के निज़ाम ने लहू लुहान कर दिया।
उसने  ज़ख्म दिया हमने भरने न दिया
अब रिश्ता यही  दरमियान कर  दिया।


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