Saturday, March 28, 2015

ज़ख्मों के निशान ने परेशान कर दिया
अपनों ही के बर्ताव ने  हैरान कर दिया।
कितने  ख़ुदा  तराशे थे  हर रोज़ हमने
ईमान ने  सब को ही  हैवान कर  दिया।
सारे शहर का हुआ बस  हमारा  न हुआ
इतना  उसने हमपर एहसान कर दिया।
मुद्दत से अब कोई फूल शाख़ पर  नही
मेरा हाल भी उसने यूं बयान  कर दिया।
कहीं दिल नहीं मिलता निसार होने  को
हमने तो उम्र को ही क़ुरबान  कर दिया।
लड़ना तो मैंने चाहा था हालात से मगर
मुझ  को  उस ने दबी ज़ुबान कर दिया।
अब कहाँ रहा मुझ में उलझने  का जुनूँ
उस के निज़ाम ने लहू लुहान कर दिया।
उसने  ज़ख्म दिया हमने भरने न दिया
अब रिश्ता यही  दरमियान कर  दिया।


Wednesday, March 25, 2015

या ख़ुदा मेरी  आज़माइशें टाल दे
मुझे मुश्किलों से बाहर निकाल दे।
अपनी रहमतों का  साया दे मुझे
हर वक़्त मुझे न उलझे सवाल  दे।
चुन चुन कर हर दर्द तू दे दे मुझे
ख़ुशी भी मगर कोई बेमिसाल दे।
मुझको भी साहिलों की तलाश है
क़िश्ती  मेरी  भंवर से निकाल दे।
ख़्वाहिश है पहुंचू मैं भी मुक़ाम पे
हौसलों को मेरे कोई  नई चाल दे।
मेरी नमाज़ या पूजा तेरे हवाले है
ज़िंदगी से  मेरा  रिश्ता बहाल दे।
कोई तौफ़ीक़ मुझको भी अता कर
मुझे तू अपनी आरज़ू ए विसाल दे। 

Monday, March 23, 2015

इश्क़ का कभी कोई  मेयार नहीं होता
तराज़ू से तौलकर भी प्यार नहीं होता।
लम्हे भर को ही प्यार माँगा था उधार
छोड़ गया  खुशबु  ऐतबार नहीं होता।
हंसने दे लिपटकर मुझे अपने साये से
मेरा ग़म अब ग़म में शुमार नहीं होता।
अब न कोई आरज़ू न हसरत दिल में
ग़नीमत है कि दिल बेज़ार नहीं होता।
बिना  मांगे मिलती हैं  नेमतें गम की
मुसीबत का कोई तलबगार नहीं होता।
ऐसा भी वक़्त था कोई छोटा न बड़ा था
इबादत की तरह अब प्यार नहीं होता।
प्यार जैसी खूबसूरत कोई शय नहीं है
इससे खता हो जाए एतबार नहीं होता।
तौबा की खैर क्यों  मनाएं  हम ज़नाब 
दो घूँट पीने से कोई गुनहगार नहीं होता। 



Friday, March 20, 2015

यहाँ न होते  तो कहीं और होते
मचा रहे हम भी वहां शोर होते।
यहां भी तो मिसाले दौर हैं हम
हम वहां भी मिसाले दौर होते।
सुर्ख़ियों में बने  रहते  वहां भी
हम वहां भी क़ाबिले ग़ौर होते।
कामयाबी चूमती क़दम हमारे
नए रिश्तों  की  हम  ड़ोर होते।
दिल में उमंग  कुछ और होती
जीने के भी नए सब तौर होते।
मुहब्बतों  के  जगमगाते  दीये 
हम खुशबु की महकी बौर होते।
आईने के सामने  इस चेहरे  के
अंदाज़ भी बदले कुछ और होते।
अगर यहाँ रहने की ज़िद न होती
बहुत मग़रूर अपने भी ठौर होते।