Monday, September 22, 2014

रिश्तों में अब प्यार की शिद्दत न रही
 दिल को अब क़रार की चाहत न रही।
ख़ुद में ही इतना मस्त है आदमी अब
उस को  किसी की अब आदत न रही।
उसने कहानी सुनाई मुझे हंस कर यूं
हक़ीक़त भी फिर तो हक़ीक़त  न रही।
उस को मनाते थे हम ख़ुद ही रूठ कर
अब तो फिर इसकी भी ज़रूरत न रही।
इस दिल से निकल सके कोई तमन्ना
अब तो इतनी भी क़ाबलियत न रही।
ग़मों का मौसम तो अब भी वैसा ही है
दर्द की ही लेकिन वो क़ैफ़ियत न रही।
हसरतें जल कर के  सब राख़ हो गईं
बरक़त कैसे होती साफ़ नीयत न रही।
 ज़िंदगी ,बेहिसी , दोस्ती  या  बेरुखी
मुझे इन से कभी भी शिकायत न रही।
माँ मुझ से कहती है हंसकर अक्सर ये
क्यूं मुझ में ही बच्चों सी शरारत न रही।    

Saturday, September 13, 2014



जब तक दिल न था सीने में
बड़ा मज़ा आता था जीने में।
होश संभाला जब से दिल ने
घुट के रह गया बस सीने में।
हाल दिल का फिर यह देखा
सुराख़ रिसते ज्यूं सफ़ीने में।
उम्र गुज़र गई फ़िर तो सारी
बस ज़ख्मों को ही  सीने  में।
चाँद की तरह जगमगाये हम
कभी धूप में नहाये पसीने में।
मेहनत से कभी डरे नहीं हम
ख़ुश्बू सी भी  आई पसीने में।
वक़्त से कभी  दिल से लड़ते  
हम चढ़ते चले गए ज़ीने  में।  

Sunday, September 7, 2014

अपनों से  कभी फ़ुरसत न मिली
अपनों से पर अहमियत न मिली।
दर्द  तो हल्का कर दिया वक़्त ने
ख़ुशी भी कभी सलामत न मिली।
ज़िंदगी का अंदाज़ निराला देखा
मेरे हिस्से की ही ज़रूरत न मिली।
खुश्बुएं मिली लाज़वाब हर क़दम
ख़्वाब भी मिले हक़ीक़त न मिली।
दिल दश्त में भटकता रहा ता उम्र
नफरतें  मिली मुहब्बत न मिली।
मेरी अदाकारी सब ने  पसन्द की
बस मुझको कभी शुहरत न मिली।
यह ज़िन्दगी रास आने लगी जब
तब मौत से भी मोहलत न मिली।   

Thursday, September 4, 2014

उन के भरोसे को कभी भी झूठा नहीं कहा
उनकी ख़ातिर हमने क्या क्या नहीं सहा।
हज़ार क़यामतें गुज़र गई थी सर पे हमारे
छू ली एक एक कर हमने भी सारी इंतिहा।
बिछड़ा मुहब्बत में मुझे इल्ज़ाम देकर वो
दिल में  मेरे कभी था जो ख़ुदा बनकर रहा।
हर ग़ाम पर मिला मुझे खुशबुओं का सफर
उसने लेकिन फिर मुझे  अपना नहीं कहा।
ख़ुदा किसी को कभी इतना ज़लील न करे
ज़माने ने भी जाने क्या क्या न हमे कहा।