वो झुर्रियां तो अपनी आईने को दिखाते हैं
तल्ख़ियां ज़िंदगी की खुद से ही छिपाते हैं।
क़िस्सा ए ज़िंदगी हम इस तरह सुनाते हैं
दिन तो गुज़रता नहीं साल गुज़र जाते हैं।
संभाले रखते हैं अपनी ख़ुदी को भी हम
वक़्त को भी रफ़्तार हम ही तो दिलाते हैं।
बुलंद हौसलों की मिसाल है यह भी एक
उदासियों में भी हम तो ठहाके लगाते हैं।
यूं बात करते हैं पुर- तपाक लहज़े से हम
अपनी ख़ामियां भी हम खुद ही गिनाते हैं।
तल्ख़ियां ज़िंदगी की खुद से ही छिपाते हैं।
क़िस्सा ए ज़िंदगी हम इस तरह सुनाते हैं
दिन तो गुज़रता नहीं साल गुज़र जाते हैं।
संभाले रखते हैं अपनी ख़ुदी को भी हम
वक़्त को भी रफ़्तार हम ही तो दिलाते हैं।
बुलंद हौसलों की मिसाल है यह भी एक
उदासियों में भी हम तो ठहाके लगाते हैं।
यूं बात करते हैं पुर- तपाक लहज़े से हम
अपनी ख़ामियां भी हम खुद ही गिनाते हैं।