Wednesday, June 3, 2009

गरीब का मुकद्दर

कभी गरीब
प्याज ,गुड ,मिर्च से
चने -बाजरे की रोटी
खाता था ।

प्याज तो, कब का गायब
हो गया था,
उसकी थाली से !
गुड भी अब गायब
हो गया है ,
उसकी थाली से !

बाकी रह गयी- मिर्च ,
क्या यह भी कभी
गायब हो जायेगी ,
उसकी थाली से ?

शायद- नहीं ,
मिर्च, कभी गायब नही होगी ,
उसकी थाली से ,
क्योंकि, मिर्च खाने से,
आँख में आंसू आते हैं
और आंसू ही तो
गरीब का मुकद्दर है ।

8 comments:

  1. और आंसू ही तो
    गरीब का मुकद्दर है ।


    अच्छी कविता
    बधाई

    सही कहा आपने !
    वरना हम हम राणा प्रताप के वंशज तो है ही !

    आज की आवाज

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  2. कृपया वर्ड वैरिफिकेशन की कष्टकारी एवं उबाऊ प्रक्रिया हटा दें !
    यूँ लगता है मानो शुभेच्छा का भी सार्टिफिकेट माँगा जा रहा हो । इसकी वजह से पाठक प्रतिक्रिया देने में कतराते हैं !

    बहुत ही आसान तरीका :-
    ब्लॉग के डेशबोर्ड पर जाएँ > सेटिंग पर क्लिक करें > कमेंट्स पर क्लिक करें > शो वर्ड वैरिफिकेशन फार कमेंट्स > यहाँ दो आप्शन होंगे 'यस' और 'नो' बस आप "नो" पर टिक कर दें > नीचे जाकर सेव सेटिंग्स कर दें !

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  3. guptaji,
    badi gupt maar maarte hain aap.........
    bahut achhi aur sacchi kavita k liye badhaiyan__

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  4. bahut achchhaa .sachchi aur saral .swagat hai is blog pe .

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  5. आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . आशा है आप अपने विचारो से हिंदी जगत को बहुत आगे ले जायंगे
    लिखते रहिये
    चिटठा जगत मैं आप का स्वागत है
    गार्गी

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  6. लाजवाब लगी आपकी रचना............मिर्च वाकई ख़तम नहीं होगी...........येही तो यंत्रणा है गरीबी की.............. भावनाओं से भरी रचना ...... स्वागत है आपका इस रचना के साथ

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  7. शरीफों की गरीबी में भी इज्जत कम नहीं होती, करो सोने के टुकडे सौ तो भी कीमत कम नहीं होती।

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