गज़ल तिरोही
हम इक पल में सदियाँ लुटा देते हैं
वक्त को हर जानिब महका लेते हैं
हर लम्हा मुहब्बत से सजा लेते हैं
हम इक पल में सदियाँ लुटा देते हैं
वक्त को हर जानिब महका लेते हैं
हर लम्हा मुहब्बत से सजा लेते हैं
जाने फिर मोहलत मिले न मिले
हर तस्वीर से दिल बहला लेते हैं
हम ग़ैरों से भी रिश्ते बना लेते हैं
हर तस्वीर से दिल बहला लेते हैं
हम ग़ैरों से भी रिश्ते बना लेते हैं
पुराने जख़्म फिर से हरे न हो जाएं
वक्त रहते उन पे मरहम लगा लेते हैं
हम सबके गम सीने से लगा लेते हैं
वक्त रहते उन पे मरहम लगा लेते हैं
हम सबके गम सीने से लगा लेते हैं
ख़ुशबू लुटाने को जब खुदा कहता है
उसकी अदालत में सिर झुका लेते हैं
उसकी ख़ुशबू में खुदाई लूटा लेते हैं
उसकी अदालत में सिर झुका लेते हैं
उसकी ख़ुशबू में खुदाई लूटा लेते हैं
डॉ सत्येन्द्र गुप्ता