धूप अब आँगन में नज़र नहीं आती
अपनो की भी कोई खबर नहीं आती।
दीवार ऊँची हो गई इतनी बीच की
रौशनी अब किसी भी पहर नहीं आती।
वो बेवफ़ाई कर गया पूरी वफ़ा के साथ
मुहब्बत में वफ़ा अब नज़र नहीं आती।
टूटने वाले दिल तो टूट हीजाया करते हैं
रात के हिस्से में कभी सहर नहीं आती।
न पूछो कि कैसे गुज़रती है अपनी अब
कोई भी शाम ज़ाम के बग़ैर नहीं आती।
सुक़ून से ही सोने का मन करता है अब
वो बचपन सी नींद क्यूं फिर नहीं आती।
अपनो की भी कोई खबर नहीं आती।
दीवार ऊँची हो गई इतनी बीच की
रौशनी अब किसी भी पहर नहीं आती।
वो बेवफ़ाई कर गया पूरी वफ़ा के साथ
मुहब्बत में वफ़ा अब नज़र नहीं आती।
टूटने वाले दिल तो टूट हीजाया करते हैं
रात के हिस्से में कभी सहर नहीं आती।
न पूछो कि कैसे गुज़रती है अपनी अब
कोई भी शाम ज़ाम के बग़ैर नहीं आती।
सुक़ून से ही सोने का मन करता है अब
वो बचपन सी नींद क्यूं फिर नहीं आती।
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