Monday, April 27, 2015

बहुत ही  ग़ुरूर  था सबको खुद पर
ज़मीन  हिलते ही ख़ुदा याद आया।
सलामती की दुआ को उठे हाथ सब
शीशे का टुटके बिखरना याद आया।
क़ुदरत  का कहर कुछ इस क़द्र टूटा
दिल का दर्द से दहलना  याद आया।
चारों तरफ़ तबाही का ही मंज़र था
आफ़तों  का वो  वक़्त  याद आया।
ज़लज़ला कभी यूँ ही भी नहीं आता
ज़ख़्म का नासूर बनना याद आया।
सब चुप हैं  मगर हर आँख रोती  है
जो बच गया उसे  ख़ुदा याद आया।



Sunday, April 26, 2015

मौसमे बहार का पता नहीं चलता
वक़्त की मार का पता नहीं चलता।
इस मुफ़लिसी ने घेर लिया जब से
किसी भी यार का पता नहीं चलता।
तू उभरा हुआ, चाँद ढलका हुआ  मैं
किसी के मेयार का पता नहीं चलता।
बहुत सुक़ून देती हैं यह  खामोशियाँ
पर इनके वार का पता नहीं चलता।
मुहब्बत मर गई मगर हम न माने
वस्लो इंतज़ार का पता नहीं चलता।
यूं भी कई पल गुज़रे हैं तेरे बग़ैर तो
तेरे ही इन्कार  का पता नहीं चलता।
रास्ता बदलना अब सीख लिया मैंने
जीत और हार का पता नहीं चलता। 
मेरे ख़िलाफ़ साज़िशें  रची किस ने 
उस  क़िरदार  का पता  नहीं चलता।
ज़िन्दगी का लुत्फ़ तो  कहीं और है
बस उस दयार का पता नहीं चलता। 

Saturday, April 18, 2015

जब  मिला चाँद  उसमे दाग़ न दिखा हमें
उसमे चांदनी का ही पुरनूर अभी बाक़ी है।
समेट लो अपनी बाहों के हल्क़ों में  मुझे
आरती में डालने को कपूर अभी बाक़ी है।
उम्र तमाम गुज़री बड़े सख़्त इम्तिहाँ से
मंज़र टूटने का ही  ज़ुरूर  अभी बाक़ी है।
हवाओं जैसा है बिल्कुल मिज़ाज मेरा भी
हद से गुजरने का भी सुरूर अभी बाक़ी है।
सफ़र तमाम हुआ पर सफ़र में हूँ मै अभी
मेरे सर पर एक यही क़ुसूर अभी बाक़ी है।
एक रोज़ तो बरसेंगी उसकी रहमतें  फिर
दुआ में  आरज़ू यह  ज़ुरूर अभी बाक़ी है।  



Thursday, April 16, 2015

बहुत दौलत थी दिल के ख़ज़ाने में
खर्च हो गई सब दोस्ती निभाने में।
ख़ून के रिश्ते भी बिक गए पैसों में
चूक हो गई हमसे ही आज़माने  में।
नशा गज़ब का था उन कीआँखों में
करते क्या हम जाकर के मैख़ाने में।
चाँद की माफ़िक़ तन्हा रह गया मैं
देर कर दी थी मैंने ही घर बसाने में।
क़िस्मत ज़रा सी  ही तो बिगड़ी  थी
सदियाँ गुज़र गई थी उसे मनाने में।
हसरतों का  दाम  चुकाते चुकाते ही
यह ज़िंदगी उलझ गई ताने बाने में।
दोस्ती वफ़ा  मुहब्बत  दरिया दिली
अब नहीं मिलती कहीं भी ज़माने में।  

Wednesday, April 15, 2015

हुस्न ढल गया  ग़ुरूर अभी बाक़ी है
नशा उत्तर गया सुरूर अभी बाक़ी है।
आँधियों  ने बगावत की  चली  गई
हवाओं में  गर्दे सफ़र अभी बाक़ी है।
इश्क़ की नदी तक तो पहुँच गए हम
उतरने का उसमे  हुनर अभी बाक़ी है।
जो मिला तेरा ही पता  पूछता मिला
चेहरे पे ज़ख्मों का नूर अभी बाक़ी है।
बहते हुए आंसू  थम न सके अब तक
चाह टूटने की किस क़दर अभी बाक़ी है।
ये आसमां जिसका है ज़हाँ जिसका है
बिखरने का उसके मंज़र अभी बाक़ी है।
न आया इश्क़ ही करना  न आया हमें
हद से गुजरने का सफ़र अभी बाक़ी है। 

Sunday, April 5, 2015

धूप अब  आँगन में  नज़र नहीं आती
अपनो  की भी कोई खबर नहीं आती।
दीवार  ऊँची  हो  गई इतनी बीच  की
रौशनी अब किसी भी पहर नहीं आती।
वो बेवफ़ाई कर गया पूरी वफ़ा के साथ
मुहब्बत में वफ़ा अब नज़र नहीं आती।
टूटने वाले दिल तो टूट हीजाया करते हैं
रात के हिस्से में कभी सहर नहीं आती।
न पूछो कि कैसे  गुज़रती है अपनी अब
कोई भी शाम ज़ाम के बग़ैर नहीं आती।
सुक़ून से ही सोने का मन करता है अब
वो बचपन सी नींद क्यूं फिर नहीं आती।  

Wednesday, April 1, 2015

हर अदा में  क़माल था  कोई
आप अपनी मिसाल था कोई।
उसके आशिक़ थे मिस्ले परवाना
हुस्न से  मालामाल  था कोई।
छुटकारा  मिल गया  उस से
इक  जाने बवाल  था  कोई।
बेचकर  ख़ून  रोटियां लाया
भूख से यूं निढाल था कोई।
भीगी आँखों से देखना उसका
आंसुओं में सवाल था  कोई।