बहुत ही ग़ुरूर था सबको खुद पर
ज़मीन हिलते ही ख़ुदा याद आया।
सलामती की दुआ को उठे हाथ सब
शीशे का टुटके बिखरना याद आया।
क़ुदरत का कहर कुछ इस क़द्र टूटा
दिल का दर्द से दहलना याद आया।
चारों तरफ़ तबाही का ही मंज़र था
आफ़तों का वो वक़्त याद आया।
ज़लज़ला कभी यूँ ही भी नहीं आता
ज़ख़्म का नासूर बनना याद आया।
सब चुप हैं मगर हर आँख रोती है
जो बच गया उसे ख़ुदा याद आया।
ज़मीन हिलते ही ख़ुदा याद आया।
सलामती की दुआ को उठे हाथ सब
शीशे का टुटके बिखरना याद आया।
क़ुदरत का कहर कुछ इस क़द्र टूटा
दिल का दर्द से दहलना याद आया।
चारों तरफ़ तबाही का ही मंज़र था
आफ़तों का वो वक़्त याद आया।
ज़लज़ला कभी यूँ ही भी नहीं आता
ज़ख़्म का नासूर बनना याद आया।
सब चुप हैं मगर हर आँख रोती है
जो बच गया उसे ख़ुदा याद आया।