Saturday, December 21, 2013

अब किसी बात का भी अंदाज़ नहीं होता
हर वक़्त एक सा तो मिज़ाज नहीं होता।
हैरान होता है दरिया यह देख कर बहुत 
क्यूँ आसमां ज़मीं से  नाराज़ नहीं होता।
खिड़की खोल दी,उन की  तरफ़ की मैंने
अब परदे वालों का  लिहाज़  नहीं  होता।
गुज़रा हुआ हादसा फिर से याद आ गया
अब काँटा भी  नज़र- अंदाज़ नहीं  होता।
नहीं होता ज़ब कभी कुछ भी, मेरे घर में
दिल तब भी  मेरा  मोहताज़ नहीं होता।
अस्पताल तो बहुत सारे हैं इस शहर में
ग़रीबी का ही  कहीं , इलाज़  नहीं होता।
 



 

Thursday, December 19, 2013

हमने ज़न्नत का इक शहर देखा है
हमने उनके, मन का नगर देखा है।
चाँद शरमा के छुप गया, बदली में
उन के हुस्न का यह असर देखा है।
ओस में नहाया हुआ उनका हमने
फूल  सा  यौवन -शिखर  देखा है।
सर्द रुख़सार से  गर्म होठों तलक़
सियाह  ज़ुल्फ़ों का क़हर देखा है।
नज़रे-साहिल से नज़रें चुरा हमने
दरियाए  हुस्न में तैर कर देखा है।
देखा है वह सर-आ-पा हुस्न हमने
रेशमी रूप का वह समंदर देखा है।
वक़्त का क़ाफ़िला भी, रुक गया
उन्होंने जब हंस के, इधर देखा है।
हमें अपना बना लिया, जब चाहा
उन्हें मेहरबान इस क़दर देखा है।
नशा नहीं उतरा, कभी भी हमारा
हमने उम्र का वो भी सफ़र देखा है।