Friday, September 13, 2019


      तिरोहे  मुझको मा सरस्वती
प्र्साद  के रूप में देती है मैं आगे  बांट देता हूँ

  हिंदी दिवस के दिन हिंदी 
               दुल्हन बनी इतराती है

हिंदी तू  भी अब  एक दिवसीय  मेहमान हो गई
हर साल हिंदी दिवस का त्यौहार मनाने आती है
अगले  साल फिर आऊंगी कहके चली जाती  है

अतिथि देवो भव की तर्ज़ पर , हिंदी तू भी हर बरस
सुबह  सबेरे भारत की मेहमान बनकर ही आती है
और ज़श्न मनाकर देर  रात गये तू चली भी जाती है

नये दौर के चाल चलन तूने भी हिंदी अब सीख  लिये
उस एक दिन में ही तू इतनी मोह्ब्बत बरसा जाती  है
अगले साल फिर आने का पक्का वायदा कर जाती है

एक दिन का मेहमान भी दिल को नहीं अखरता है
किसी का क्या लेती है आती है और चली जाती है
अपने हिस्से की ज़िंदगी एक ही दिन में जी जाती है

हिंदी दिवस की नई नवेली दुल्हन बन कर  हिंदी
सारा दिन ही  हिंदी  का मधु च्नद्र दिवस मनाती है
देर रात गये चले जाने की गुस्ताखी  कर जाती  है

अब हिंदी - हिंदी दिवस इस तरह ही मनाती है

         डोक्टर  सत्येंद्र गुप्ता
            मो   9837024900