तिरोहे मुझको मा सरस्वती
प्र्साद के रूप में देती है मैं आगे बांट देता हूँ
प्र्साद के रूप में देती है मैं आगे बांट देता हूँ
हिंदी दिवस के दिन हिंदी
दुल्हन बनी इतराती है
हिंदी तू भी अब एक दिवसीय मेहमान हो गई
हर साल हिंदी दिवस का त्यौहार मनाने आती है
अगले साल फिर आऊंगी कहके चली जाती है
अतिथि देवो भव की तर्ज़ पर , हिंदी तू भी हर बरस
सुबह सबेरे भारत की मेहमान बनकर ही आती है
और ज़श्न मनाकर देर रात गये तू चली भी जाती है
नये दौर के चाल चलन तूने भी हिंदी अब सीख लिये
उस एक दिन में ही तू इतनी मोह्ब्बत बरसा जाती है
अगले साल फिर आने का पक्का वायदा कर जाती है
एक दिन का मेहमान भी दिल को नहीं अखरता है
किसी का क्या लेती है आती है और चली जाती है
अपने हिस्से की ज़िंदगी एक ही दिन में जी जाती है
हिंदी दिवस की नई नवेली दुल्हन बन कर हिंदी
सारा दिन ही हिंदी का मधु च्नद्र दिवस मनाती है
देर रात गये चले जाने की गुस्ताखी कर जाती है
अब हिंदी - हिंदी दिवस इस तरह ही मनाती है
डोक्टर सत्येंद्र गुप्ता
मो 9837024900