वह रंज़ो ग़म तेरी बेवफ़ाई का
सिलसिला था वो मेरी तन्हाई का।
तू गया तो लौटके आ न सका था
क्या सबब बताता मैं जुदाई का।
तेरे चेहरे पर लिखा पढ़ा था मैंने
मेरा चरचा था न था रुसवाई का।
वही छोड़के चल दिया तन्हा मुझे
दावा किया था मेरी रहनुमाई का।
रात भर दिल में दर्द उठा था मेरे
गूँज़ता रहा सुर उसी शहनाई का।
आज फिर दिल परेशान है बहुत
याद आ रहा है किस्सा सगाई का।
शहरे वफ़ा में दर्द का साथी न कोई
डर आज भी लगता है रुसवाई का।
खुशबु तेरी अब भी मिलती है मुझसे
एहितराम करती है मेरी तन्हाई का।
एहितराम - इज़्ज़त
------सत्येंद्र गुप्ता
सिलसिला था वो मेरी तन्हाई का।
तू गया तो लौटके आ न सका था
क्या सबब बताता मैं जुदाई का।
तेरे चेहरे पर लिखा पढ़ा था मैंने
मेरा चरचा था न था रुसवाई का।
वही छोड़के चल दिया तन्हा मुझे
दावा किया था मेरी रहनुमाई का।
रात भर दिल में दर्द उठा था मेरे
गूँज़ता रहा सुर उसी शहनाई का।
आज फिर दिल परेशान है बहुत
याद आ रहा है किस्सा सगाई का।
शहरे वफ़ा में दर्द का साथी न कोई
डर आज भी लगता है रुसवाई का।
खुशबु तेरी अब भी मिलती है मुझसे
एहितराम करती है मेरी तन्हाई का।
एहितराम - इज़्ज़त
------सत्येंद्र गुप्ता